12. राजेश सिंह जी के एगो कबिता (18) - माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता

मान जाईं, कबिता मति लिखवाईं।
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रहे दीं जेंगा बानी हम,
कबिता के क,ख,ग न जानी हम,
हमार छवि जनि बनाईं,
मान जाईं, हमसे कबिता मति छनवाईं।
हईं हम दियरी बिन तेल के,
बातो हमार बिना मेल के,
हमके रवि जनि बनाईं,
मान जाईं, हमसे कबिता मति छनवाईं।
लिख देनी कबो-कबो दरद-ए-दिल,
सुना देनीं, जब केहू आपन जाला मिल,
सुनिए के हम राजा बनि जाईं,
मान जाईं, हमसे कबिता मति छनवाईं।
गैर जनि बुझीं, हम राउरे हईं,
पक्का भोजपुरिया अउर भारतीए हईं,
कबिता लिखे के कहि के हमके आन मति बनाईं,
मान जाईं, हमसे कबिता मति छनवाईं।

मान जाईं, हमसे कबिता मति छनवाईं।।

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राजेश सिंह, सिवान
रोजी-रोटी खातिर बहरवासूं हो गइनीं
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ए कबिता में तनि-मनि बदलाव माने वर्तनी आदि ठीक कइल गइल बा।

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