23. प्रिस रितुराज दूबे जी के दुगो कबिता (43, 44) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

1. उनकर आहट

छन छन छनके
आहट सुन के मन गचके
जाने कवन राहे अहिये
एहे सोच के मन खटके ।
आदत अईसन उनकर भईल
बिना सोचे मन तरसे
नासा केतना नसीला होला
देख के उनके अईसन सूझे।
अंग अंग के अईसन रचना
लागे फुरसत में रहले राम
तनिको हमनियो पर रहित धयान
लिहती हजार नैना हथिया।
कारी कजरा मदहोस बा कईले
चाल त बा पागल बनवले
हाथ के मेहदी के करामत सुनS
सुनरता प बा चार चान लगवले।
कमर कमानी पातर छितर
चिकन बा चाम हो
माछी बइठत छिछ्लत जाले
काबू में ना होला ओकर देह हो।
माई बाप के धन्यबाद करS
अईसन जन्मवले चान हो
देख के अखिया टकटकी लगावे
छोड़ जाला देह के साथ हो।
गजब के गोराई देख के
अंग अंग होजाला छितराय हो 
  बनठन के निकलेली अईसे
पगला जाले नैना हाजार हो ।
पायल छनके चूड़ी खनके
ओठ के लाली मंद मुस्कान
जाने कईसन किस्मत होखी ओकर
जेकर जिनगी होखी बाहार ।
घर गमकी मन बहकी
जईबू जेकर अगना हो
केतान्न के मन तरस गईल
आस बा लागल येन्हू हो ।

                            
 2. नारी
नारी है जगत जननी ,नारी है सम्मान।
नारी से ही नर बना है , सदा करो आदर सम्मान।
नारी सद्भावना है, नारी प्रतिक त्याग बलिदान।
नारी है सरधा/गायत्री ,जिससे हमे मिले ज्ञान ।
नारी में मिले ममता , नारी में है संहार ।
नारी के रूप में माँ बहन , नारी ही जीवन संगनी ।
नारी रूप सिया , जो राम का साथ ना छोड़ी ।
नारी रूप राधा , जो कृष्ण का मान ना हरी ।
नारी रूप झासी की रानी ,जिसने गोरो को रुला दिया ।
नारी प्रेम का प्रतिक है ताज महल,
जो सदियों से नेह सम्मान का स्थम बना ।
लग गयी है बुराई का मेला , घूम रहा है पूरा समाज।
हो रहा है , नारी का सौदा , कुछ तो करो सर्म लिहाज ।
जिस नारी रूप से जन्म लिए ,
उसी रूप का कर रहे हो अनादर और बहिष्कार ।
कही छेड़ खानी,कही बलात्कार ,हो रहा है पूरा समाज बदनाम ।
सोयी सरकार कब जगे गी ,जब हो जाये गा पूरा सत्यानाश ।
बच्ची सोच रही है’ :-  कवन गलती रहे की हमके मुआ देलू
कोखिये में अईसन सराप देलू
नारी बिनु जग अकेल
तुहू नारी हऊ , कईसन सजाये देलू
                   हाथ जोड़ कर करती बिनती , दूर करो बुराई को
                   जो नर ना नारी का सम्मान करे और
                   जो नारी ना नर का सम्मान करे ......दूर करो उसे जग समुदाई से
          नये और मजबूत कानून बनाकर , दूर करो समाज द्रोही को ।
          भारत कS आगे बढ़ावे के बा , सघे लेके मर्द आ नारी के।  

प्रिस रितुराज दूबे

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