19. योगेन्द्र शर्मा जी के दुगो कबिता (34, 35) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
अब प्यार में उ
मिठाई कहाँ
जोर जबरी नदारत
ढिठाई कहाँ
स्वार्थ के हव तराजू
सबै हाँथ में
साँच मजगूत रिश्ता
जोखाई कहाँ।
पूछत जमीं आज
गोकुल के हव
प्यार के बाँसुरी अब
सुनाई कहाँ
राह खोजत धधाला
हिया आज भी
राधा रानी हेराईल
कन्हाई कहाँ।
कहाँ बा भरत अब
मिलैं राम कहँवा
लखन लाल जईसन
उ भाई कहाँ
कौशल्या नियर त
अबो माई बाटीं
मगर पूत में उ
रघुराई कहाँ।
श्रवण कै कथा
साँच बाटै मगर
आज दुनिया में फिर से
सुनाई कहाँ
भ्रूण मारत सबै
आज कनिया के "योगी"
त सीता दोबारा से
आई कहाँ।
2. आरक्षण के आग में......!
कुफ़स ता देखि देखि
चिहर ता छतिया
आरक्षण के आग में
जर ता सारी जतिया।
सब धन बाईस पसेरी में
जोखात बाटे
देखि के बिधान
एकलव्य सकुचात बाटे।
मीटी पहिचान लागे
अर्जुन के बान के
कइसे के भेदाई अब
चिरई के अँखिया।
आरक्षण के आग में
जर ता सारी जतिया।.......2
हर ओरी शोर बाटे
मनवा उचार लागे
ढेर अंहियार बाटे
भोर थोर थोर लागे।
कोयल काग बनी जब
गाई कवन गितिया
पिपरा के डारी संगे
राखी कवन रीतिया।
बाटे का लचारी
अझुरात बा किरितिया
मागं ताटे भानु काहें
जुगनू से पंखिया।
आरक्षण के आग में
जर ता सारी जतीया।......2
द्रौण ज्ञान लाग ताटे
होखत उघार बाटे
बान औ कमान सबै
मांग ता उधार बाटे।
सिधरी पे रोहुआ के
चलिया बिसात बाटे
बार बार गेहूँ संगे
घुनवां पिसात बाटे।
मुँह ढाँकी "योगी" भी
छिपावे ला सुरतिया
बदरी बोलावे काहें
चाँद वाली रतिया।
आरक्षण के आग में
जर ता सारी जतिया।।
योगेन्द्र शर्मा
"योगी"
भीषमपुर,चकिया,चन्दौली
(उत्तर प्रदेश)
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