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26. डॉ सोनी पाण्डेय जी के 2गो कबिता (50, 51) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. हमार अपराध.... हम लिख देलीं कविता में कहानी में आपन ..उनकर इनकर और तोहार बात... जइसे टभके ला पाकल घाव टभके लागिलां तोहके... जइसे बिख से बिखियाइल नागिन लोटे ले जइसे धरती पर खड़बड़ाला सुखल पात पतझड़ के जइसे बिन बरखा किरसी सुखाले ओइसे लोटेल...खड़बड़ाला सुखाला तू जानीलां ..... पर लिखले से हमके ओतने पिरित है जान ला, जेतना तोहके हमरी देंह से तू तोपत चल बना के नियम /कानून हम लिख के उघारब जान के कि लिखल हमार तोहरी दुनिया में सबसे बड़ अपराध ह....। 2. जांत..... हमरी ओसारी में करियांह ले माटी में गाड़ल जांत ओतने अज़र अउर अमर ह जेतन अंगना में हरियरात..मरुआत कुहूकत - गावत तुलसी । एगो जांत अपनी छाती में गाड़ेली मेहरारु जनमते पीसे ली कुहूक -कुहूक बेदन कि बेदना क दाग छूटत ना छूटेला चाहे छूटे बाबा क देस चाहे मिले सजना रंगरेज... एगो जांत करेजा में गाड़ेली मेहरारु कि दुवार से कबो ना आइल घाम निहारे सउरी क बेदन कि दुवारे से कबो ना आइल पढ़ेके मेहरारुन क नेह बसन्त कि दुवार से कबो ना आइल गावेके सावन आपन हरियर गीत मेहरारुन की अन्हेरी कोठरी में भितरी... जांत जानेल /पहिचाने ला भोरे गावत कोरस में जं

25. सतीश मापतपुरी जी के 3गो कबिता (47, 48, 49) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. देसवा सोन के चिरइयाँ देसवा सोन के चिरइयाँ एकर मान रखिहऽ . कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .   पंजरा ना सटे दुसमन दुर तक खदेड़ीहऽ . हाथ जे उठावे ओकर पँखुरा कबरीहऽ . देस बदे मुट्ठी में परान रखिहऽ . कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ . आँख जे तरेरे ओकर ढेंढ़र नीकलिहऽ . करे जे गद्दारी देस से चिउंटी जस मसलिहऽ . मन में जय जवान - जय किसान रखिहऽ . कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ . देस आपन आबरू ह देस आपन सान ह . देस गुरुग्रंथ , गीता , बाइबिल , कुरान ह . संख के अवाज में अजान रखिहऽ . कवनो आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ . देसवा सोन के चिरइयाँ एकर मान रखिहऽ . 2.  इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं  इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं . इ नज़र में बसाइब त का फ़ायदा . हमरी बतिया से छतिया जुडावल करीं . इ करेजा लगाइब त का फायदा . रउवा होंठवा के हरदम हँसी ही मिले . बस खुसी ही सनम हर कदम पे मिले . हमरा दिल पे सदा राज रउरे रही . ताज हमके बनाइब त का फायदा. छुट गइल साथ बात सब बिसर भी गइल. लोर भुइयां गिरल गिर के जम भी गइल . हमार जियरा जरल दूर से देख लीं . हाथ आपन जराइब त का फ़ायदा.

24. जगदीश खेतान जी के दुगो कबिता (45, 46) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. मंहगाई    का ईहे कहाई मंहगाई।   तनी बतलईब मंहगू भाई।।  दादा जब हमरे पढत रहें  खुद अपने मुंह से कहत रहें।  खडिया दवात मे घोर घोर   पटरी पर अक्षर गढत रहें।  अब उनके पोतन के देहीं बा कोट पैंट और नेकटाई।। का ईहे कहाई मंहगाई। तनी बतलईब मंहगू भाई।।          जे के न जूरत रहल भगई          ऊ खाता रोज पान मगही।          जूता बाटा के पहिनत बा          जे घूमत रहल बिना पनही।।          अईलं जब पूत सऊदीया से          का खूब भईल हाई फाई।।          का ईहे कहाई मंहगाई ।          तनी बतलईब मंहगू भाई।।          जे सतुआ भूजा के तरसे          जे जोतत रहल खेत हर से।          कोईलरी गईल रहलं एक बेर          सौ रूपया करजा ले हमसे।।          ऊ ड्राइवर अब रखले बान          ट्रेक्टर से होता जोताई।।           का ईहे कहाई मंहगाई।          तनी बतलईब मंहगू भाई।।          नलका के पानी करछावे          अब मिनरल वाटर आवता।          मट्ठा महिया अब के पूछे।          पेप्सी कोला अब भावता।।          एक पसर दूध जे के न जूरे          ऊ काटे मक्

23. प्रिस रितुराज दूबे जी के दुगो कबिता (43, 44) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1.  उनकर आहट छन छन छनके आहट सुन के मन गचके जाने कवन राहे अहिये एहे सोच के मन खटके  । आदत अईसन उनकर भईल बिना सोचे मन तरसे नासा केतना नसीला होला देख के उनके अईसन सूझे। अंग अंग के अईसन रचना लागे फुरसत में रहले राम तनिको हमनियो पर रहित धयान लिहती हजार नैना हथिया। कारी कजरा मदहोस बा कईले चाल त बा पागल बनवले हाथ के मेहदी के करामत सुन S सुनरता प बा चार चान लगवले। कमर कमानी पातर छितर चिकन बा चाम हो माछी बइठत छिछ्लत जाले काबू में ना होला ओकर देह हो। माई बाप के धन्यबाद कर S अईसन जन्मवले चान हो देख के अखिया टकटकी लगावे छोड़ जाला देह के साथ हो। गजब के गोराई देख के अंग अंग होजाला छितराय हो     बनठन के निकलेली अईसे पगला जाले नैना हाजार हो  । पायल छनके चूड़ी खनके ओठ के लाली मंद मुस्कान जाने कईसन किस्मत होखी ओकर जेकर जिनगी होखी बाहार । घर गमकी मन बहकी जईबू जेकर अगना हो केतान्न के मन तरस गईल आस बा लागल येन्हू हो ।                                2.  न

22. आदित्य प्रकाश अनोखा जी के दुगो कबिता (41, 42) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. ई जे बिहार ह ई जे बिहार ह बौद्ध के विहार ह महावीर के प्यार ह गुरु गोविंद के दुलार ह ई जे बिहार ह। सिता के जनम स्थान ह चाणक्य के सम्मान ह असोक के प्राण ह नालन्दा के ज्ञान ह मेगास्थनीज,व्हेन सांग, आइल इंहा फाहियान ह ई जे बिहार ह। कुंअर के तलवार ह जेपी के ललकार ह गांधी के हुंकार ह राष्ट्रपति के दुआर ह ई जे बिहार ह। महेन्दर मिसिर के गान ह पुरबिया पहचान ह भिखारी ठाकुर के रचना ह बिदेसिया के संरचना ह विद्यापति के भाषा ह लोकभाषा में आसा ह ई जे बिहार ह। आर्यभट्ट ह, रामानुजन ह गणित के रास्ता बहुते सुगम ह मेहनत कस, मेधावी के होड़ ह आईएएस-आईपीएस, डॉक्टर-इंजीनियर से खूब भइल सिंगार ह इहे आपन बिहार ह।। 2. हम बुझिले हम देखिले हम सुनीले हम बुझिले हम समझिले, आपन गउँआ, आपन नगरिया लोगवा काहे छोड़$ता, सहर से नाता जोड़त जोड़त अंगना काहे भोर$ता। हम सहिले हम भोगीले हम जीहिले हम मरीले, समय बेचके पइसा खातिर् घर छोड़के रोये खातिर सारी उमरिया सहर में जागीके गऊंआ में एक दिन सुते खातिर। हम पाइल

21. अनिल कुमार जी के दुगो कबिता (39, 40) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. माई  तोहरा सेवा से बढके ना कवनो संस्कार बाउवे तोहरा  अचरा मे  माई  सगरो  जहान  बाउवे तुही  सब अन- धन  तुही भगवान  हो तोहरा से बढके ना कुछ येही जहान हो तोहरा  चरण धुली  मे माई गंगा नहान बाउवे तोहरा  अचरा  मे  माई  सगरो  जहान बाउवे भुखे  रह  माई  बबुआ  के  खिलावेलु अचरा  के  बेनिया  बनाइ  डोलावेलु तोहरा खातिर माई हरदम बबुआ नदान बाउवे तोहरा  अचरा  मे माई  सगरो  जहान  बाउवे बनल रहे सर पर माई तोहार आशिस हो कही नाही झुके तोहरा बेटा के शिष हो तोहरा से बढके  जग मे ना केहु महान बाउवे तोहरा अचरा मे माई सगरो जहान बाउवे 2.  बदरा से अर्जी   (कबिता)   अब बरस जा बदरा बहार हम अरजी करीले तोहार नाही त लागी सबके हइया घास-फुस मिले ना दइया बथानी भुखे बछडा के मइया बछडा के भी तोहसे पुकार अब बरस जा बदरा बहार तोहरा से ना केहु बा खास सारा जन के तोहसे बा आस बुझा द तु धरती के प्यास बन धटा -धनघोर अन्हार अब बरस जा बदरा बहार सुखा देहलस फसल के मार घर मे बिया बेटी कुआर कइसे होइ ओकर शादी सर पर महाजन के बा कर्जा भारी पाव पडी बिनती करी हजारो बार अब बरस जा बदरा बहार   अनि ल कुमार      गॉ

20. चंद्रशेखर प्रसाद जी के दुगो कबिता (37, 38) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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1. लागत बा दहेज अब........ दुलहिन बनि के अइनी पापा, रहि बिरहिन बनि के माई, लागताs दहेज अब हमरा के खाई, लागताs दहेज अब हमरा के खाई, चार दिन से भुखाइल भइया,पानी बिना हूटकी, पापी कसाइयन से बचाव चाचा कर कुछ चटकी, ससुई के चाल हमरा लागता भयावन, एकहगो बात के दे तिया धिरावन, कहियो ना कहियो देख लागता हमके जराई, लागता दहेज अब हमरा के खाई, लागता दहेज अब हमरा के खाई, ससुरा छीन लेले बा सब गहना गुरिया, हर बतिये में देवरा ताने गरदन पर छुरिया, जब मन करे ननदी झोटा ध के मारे, ‌बचा ल हो बाबा बानी मउगत के दुआरे, जनम के साथी बलमुआ बनल बा कसाई, लगता दहेज अब हमरा के खाइ, लागता दहेज अब हमरा के खाई, दुलहिन बन के अइनी पापा, रहि बिरहिन बनि के माई, लागत बा दहेज अब हमरा के खाई, लागत दहेज अब हमरा के खाई,  2. रऊरा बानी परदेस पिया.....        राऊरा बानी परदेस पिया             ऐइजा चांद निकलल बा, कहिया से मुरझाईल चेहरा,             आज हमार खिलल बा, राऊरा बानी परदेस पिया,,,,,, आज हमहू सजल बानी,सगरी सोलहो सिंगार में, रतिया हमार बीते तमाम रउरे इंतज़

13. कन्हैया प्रसाद तिवारी "रसिक" जी के एगो अउर कबिता (36) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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भईया हम हईं  ठेठ बिहारी  भईया हम हईं  ठेठ बिहारी  रसिक नाम गुरु दिहले बानी  मंत्र हमार हऽ रसगर बानी  (वाणी) हथडीहाँ के  हईं निवासी  जय भोले बाबा अविनाशी  जिला ह रोहतास ठिकाना  दावथ पड़ेला गाँव के थाना फौज में बितल बत्तीस साल मन से भारत माँ के लाल  जांगर में भोजपुरिया खून  कविता के बिन जियल सून  अबही बा निवास बैंगलोर बहेला माई खातिर लोर मानव हईं मानव से प्यार करीला मानवता खाति सोच विचार करीला रसिक नाम धराइल रसगर बोले से उदास लो के उदासी निःसार  करीला -------------------------- परिचय:- नाम- कन्हैया प्रसाद तिवारी " रसिक " ग्राम- हथडीहाँ पोस्ट- सकरी रामनगर  (हसन बाजार) जिला- रोहतास  हम भारतीय वायु सेना के वारंट आॅफिसर पद से रिटायर  फौजी बानी । बैंगलोर में पुरा परिवार साथे रहेला हिन्दी , अंग्रेजी आ भोजपुरी में कविता लिखल हमार शौक हऽ फिलहाल हम भोजपुरी कविता के प्रति  समर्पित बानी  --------------------------------

19. योगेन्द्र शर्मा जी के दुगो कबिता (34, 35) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

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     1.  स्वार्थ के हव तराजू.........! अब प्यार में उ   मिठाई कहाँ जोर जबरी नदारत   ढिठाई कहाँ स्वार्थ के हव तराजू   सबै हाँथ में साँच मजगूत रिश्ता   जोखाई कहाँ। पूछत जमीं आज   गोकुल के हव प्यार के बाँसुरी अब सुनाई कहाँ राह खोजत धधाला हिया आज भी राधा रानी हेराईल कन्हाई कहाँ। कहाँ बा भरत अब मिलैं राम कहँवा लखन लाल जईसन उ भाई कहाँ कौशल्या नियर त अबो माई बाटीं मगर पूत में उ रघुराई कहाँ। श्रवण कै कथा साँच बाटै मगर आज दुनिया में फिर से सुनाई कहाँ भ्रूण मारत सबै   आज कनिया के "योगी" त सीता दोबारा से आई कहाँ। 2. आरक्षण के आग में......! कुफ़स ता देखि देखि चिहर ता छतिया आरक्षण के आग में जर ता सारी जतिया। सब धन बाईस पसेरी में जोखात बाटे देखि के बिधान एकलव्य सकुचात बाटे। मीटी पहिचान लागे अर्जुन के बान के कइसे के भेदाई अब चिरई के अँखिया। आरक्षण के आग में जर ता सारी जतिया।....... 2 हर ओरी शोर बाटे मनवा उचार लागे ढेर अंहियार बाटे भोर थोर थोर लागे। कोयल काग बनी ज