7. राजेश कुमार विश्वकर्माजी के एगो कबिता (11) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

बचपन
एक बेर अउते फेर बचपनवा,
रोवत हवे अँखिया आ तड़पेला मनवा.
एक बेर अउते फेर बचपनवा.
खेलति हम गुल्ली डण्डा कवनो बहनवा,
बापु खोजत भर गाँवे माई मोर अँगनवां,
लुटतिजा खुबे माजा आके एही रे जहनवाँ.
एक बेर.....
साथी संघाती सभे एके साथे खेलती,
कष्ट कवनो रहत एके साथे झेलती
लुका छिपी खेलति जाके काका के भवनवाँ,
एक बेर.....
खेते जाके तोड़ति चोरी से जी ऊखियां,
देख के ना कहति मोरे दीदिया के सखियां,
चोरि से ऊखरति ज मूखिया के चनवां,
एक बेर......
माई रोज करत हमके काचर कुचुर कऊआ,
बापु खिआवते रोज दूध भात कऊआ,
दादी पिअवति दुधवा कवने रे बहनवा .
एक बेर......
बाबा रोकै हमके ऩा जायेके हवे पोखरा,
चाचा डेरवावे हमके लेके बोरा क धोकरा,
चाची देखावे रात मे जोनी अउरू चंनवा,
एक बेर अउते फेर बचपनवा,
रोवत हवे अँखियाँ आ तड़पेला मनवा,
एक बेर अउते फेर बचपनवा.

---राजेश कुमार विश्वकर्मा
   घोषी मऊ उत्तर प्रदेश 

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