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जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

7. माननीया सुमन सिंह के कहानी - बेकहला (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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" ए बचवा हई मोबईलवा पर का दिनवा भर   टिपिर-टिपिर करत रहेला।कवनो काम -धंधा ना ह का तोहरे लग्गे आंय।" बेकहला बोलत-बड़बड़ात बचवा के गोड़तारी आके करिहांय धय के निहुर गइलीं। " तू आपन काम करा न , काहें हमरे फेर में पड़ल रहे लू।अबही जा इँहा से हमार दिमाग जिन खा। " आछा-आछा हमरे छन भर खड़ा रहले से तोहार दिमाग जर-बर जात ह।अइसन दिमाग के त हम बढ़नी बहारी ला।जा ए बचवा बूढ़ -पुरनिया से जे अइसे बोली ओके भगवान देखिहन।" " काहें , आज सबेरे से केहू भेटायला ना ह का कि हमरे पीछे पड़ गयल हऊ।अब ढ़ेर बोलबू न त अम्मा से कह देब।" बचवा खटिया छोड़ के अँगना ओरी दौरल गइलन बाकिर अम्मा के कमरा ओरी ना जाय के रसोई में घुस गइलन।उँहा कुछ मन जोग ना खाये के मिलल त बेकहला के लग्गे आ गइलन।बेकहला दलान में बइठ के तमाखू खात रहलीं। " ए आजी सुनत हऊ हो , कुछ खाये के बना दा।" बचवा निहोरा कइलन बाकिर बेकहला ना बोललीं। " अब देखा के कपार दुखवावत ह , हेतना देर से चरौरी करत हईं बाकिर एक्को बेरी ना बोलत हऊ।अबही खुनुस में कुछ टेढ़-सोझ बोल देब त लगबू हमार मुंह फूंके।" बचवा भुक्खन छटपटात

6. मान्यवर नवीन कुमार पांडेय के कहानी - नोटपैड (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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आज रविवार बा अवकाश के दिन , एह दिन जगरोपन के ज्यादातर समय अखबार , टीवी , पत्रिका , मोबाईल सोसल मिडिया के वाट्सएप फेसबूक आदी पर बीते।आजु ' मदर्स डे '( माई दिवस) बा। जवन चिझु पर भी नजर डालत बाड़न सभी जगह माई लोग के महान कार्य , जवन कि माई लोग खातिर साधारण कार्य होला , के हीं चर्चा दिखाई दे रहल बा । सोसल मिडिया पर त सबसे जादा ।लगभग अनुकर सभी मित्र लोग अपना-अपना माई के साथे फोटो आ माई के वर्णन अपना-अपना लेखन क्षमतानुसार कइले बा लोग , बधाई के अदान-प्रदान बा।उनुकर एगो मित्र द्वारा उनुका माई भाषा में माई के फोटो के साथे वर्णन त उनुका के काफी गहराई तक प्रभावित कइलख। एह सब से अब बम्बे के वासी हो गएल जगरोपन का आपन माई इयाद पर गईलीहऽ। उनका बिहार के अपना गाँवे घरे गइला , माई आ छोट भाई भूलन के देखला आ बात कइला लगभग 10 बरिस हो गएल बा।एह बीचे ससुरार आ सढुआना के प्रयोजन में चार पाँच हाली जवार के जतरा भी कइलन बाकिर अपना धर्मपत्नी सुशिला(जे अब "सुश"कहाएल पसन करेली)के दबाव में अपना घरे ना जा पइलन। ससुरार के लोग जरूर हमेशा सम्पर्क में रहे।ओही लोग से कभी कभार उनुका माई आ छोट भाई भूल

5. मान्यवर आदित्य प्रकाश अनोखा के कहानी - बलि के बकरा (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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दीना आ दीना बो किरिन फुटते खेत ओर चल दिहल , पीछे-पीछे डेग में डेग मिलावत उनकर चार- पांच गो बकरी आ दु गो बकरी के बच्चा भी चलल। काल्हुए त दीना के एगो पाठी दोसरा के खेत चरत पकड़ा गइल रहल। लाख बिनती- हंथजोरी के बादो पटवारी उनकर पाठी ना लौटइले रहे। हार-पाछ के दुनु बेकत पटवारी के दुआरा से अइसन लवट के गइल रहे लो जइसे आपन संतान कोई छोड़ी के जाला। रतिया बिना खइले सुतल लो आ किरिन फूटते रोज खानी आपन बकरी लेले खेत कावर चलल बा लो। दीना के मन मे पटवारी के बात ठनकत रहे , देख दिनवा तोहर पाठी हमर खेत चरल बा , एक बेर के होखे त छोड़ दीं , ई तोहनी के रोज के नटंकी हो गइल बा। पाठी तोहर हम एके सरत प छोरम। आपन हउ मानता वाला खंस्सी बा तवन हमरा के दे दे। आरे उ का करबे रख के , आखिर मानता वाला दिने उ ते काली माइ प चढ़ा देबे , ओमे तोरा का भेंटी ने पइसा ने मांस , हम तोहर पाठी लावटा देत बानी हउ खंस्सी हमरा दे दे। दिनवा कहलस मालिक उ त मानता के बा , काली माइ के हम का चढाएम , काली माइ सारा बिनास कई दिंहें , मालिक गोर पड़त बानी अबसे अइसे ना होइं हमार पठरुआ दे दीं मालिक। मालिक झरपेट के भगा देहले रहे दीना के , आ साथे-साथे

4. मान्यवर लोकेंद्र मिश्रा के कहानी - पुजारी बाबा के लोटा (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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पुजारी बाबा के गाँव भर इज्जत करेला आ जे जहें देखेला तहें पांव लागीं बाबा , गोड़ लागीं बाबा शुरू क देला। पुजारी बाबा के उमिर लगभग चौरासी- पचासी बरिस होत होई , पातर देहिं के ऊपर खाली एगो ठेहुन ले धोती , बांया हाथ में उनका से ऊँच एगो छड़ी आ दहिना में एगो फुलहा लोटा। पुजारी बाबा कहीं जास बाकी उनकर लोटा उनका साथहीं रहे। कई लोग उनका से लोटा ले लेके मजाक भी करे बाकी ऊ मजाक के बात हंसि के उड़ा देस। पुजारी बाबा ऐसे त जात से बाभन रहने बाकी कब्बो कवनो जात के आदमी के नीचा ना बुझने सबसे एक जईसन बेवहार रहे , एगो इहो कारण रहे की पूरा गाँव पुजारी बाबा के इज्जत करे। जवना दक्खिन टोला में केहू जाए ना ऊ ओहू जा अगर कवनो गाई - भईंस बेमार पड़ जाव त झारे फूंके पहुँच जास। एक बेर के बात ह रहसु चमार के गाई के तबियत खराब हो गईल , जब पुजारी बाबा के पता लागल त ओबेरा ऊ गाई   के नाद साफ़ करत रहने , सब छोड़ - छाड़ के चमरटोली में गइने आ गाई के झार- फूँक कईने , पूरा गाँव उनका प तब बहुत खिसियाईल रहे बाकी पुजारी बाबा कब्बो केहू के खिसियाईल के माख ना कइने। पुजारी बाबा के लोटा के ले के हमरी मन में बहुत शंका रहे की भाई ई पुज

3. मान्यवर दिलीप पांडेय के कहानी - अनाम (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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जीवन के बडकी भउजाइ जवन बिआह का दूसरके साल मुसमात हो गइल रही बहुत दिन से उनका के बोलावत रही।जीवनो बहुत दिन से सोचत रहस भउजाइ से भेंट करेला ।लेकिन संजोग ना बनत रहे। बिधवा बिआह के तमाम बिरोधो का बादो जीवन के बाबू सावित्री के बिआह दूर का रिश्तेदार जलेसर से क $ देले रहस।जलेसर अपना पुरनका गांव से कोसहन दूर पहाड़ का किनारे बसल एगो गांव में आपन घर बना लेले रहस।जीवन का  दूइए बरिस में अपना भउजी से बहुत लगाव हो गइल रहे ।एह से उनका भउजी के देखे के मन करत रहे। आठ साल पहिले के सब बात इयाद करत जीवन टमटम से शांतिपुर ला चललें ।गांव से दौलतपुर बस अड्डा अइलें।दौलतपुर से  सकलडीहा खातिर बस मिलल। सकलडीहा से शांतिपुर जाए के रहे ।सकलडीहा ले बस से गइला का बाद उनका शांतिपुर खातिर कवनो सवारी ना मिलल।बेरा डुबे में एक घंटा ले बाकी रहे।कवनो सवारी ना मिलला कारण उ पैदले चल देलें।अनजान रास्ता में जाए के रहे एह से झटकल जात रहस।कुछ दूर गइला का बाद जंगल मिलल ।जंगल का किनारे एक आदमी खेत अगोरत रहे।उ अगोरनिहार से पूछलें "हइ रास्ता शांतिपुर चल जाइ भाई" ? उ कहलें "हं हं बस जंगलवा पार करते बुझीं जे शांति

2. मान्यवर रास बिहारी रवि के कहानी - सुरसतिआ सुतले रह गइल (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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सुरसतिआ चाची के घर के लगे पुरा गाव बिटोराइल रहो । ई बात होत रहे चार पांच दिन से चाचीआ के केवार बन्द बा । पुरा गाव के कवनो अनहोनी के अनदेशा होत रहुए । तबही खलिफा काका कहले केवारिआ खोल के देखा लोग का भइल बुढिआ के । तब महेश कहले का का केवारी भितर से बनद बा आउर सरल खानी मोहकतो बा । तबले मुखिआ जी आ गइले अब इहे फयसला भइल कि मोहन के फोन कइल जाव आउर केवारी तोराव । मोहन सुरसतिआ चाची के एकलाउता बेटा बारन । चाचा के मरला के बाद उनकरा के पढावे मे सब जमीन बेच के ईनजिनिअर बनावाली अब उ अपना मेहरारु आउर लइकन के सगे कलकता लहेलन । तबे दिनेश आके बोललन चचिआ मर गईल बिआ । तले हम मोहन के फोन लगा देले रहनी फोन मोहने उठवले आउर बोलले चाचा प्रणाम का खबर । हम बतावनी तोहर माई मर गईल बारी । उ रोअते रोअते कहले चाचा हम आजे फलाईट पकर के आवत बानी।   मोहन माई के मरला के खबर सुन के पागल खानी हो गईले । उ आपन बोस के लगे गईले छुट्टी मिल गइल । तब उ मोबाइले से टिकट बनावले । धरे गईलन तब ले उनकर मेहरारू तइयार रहली । उनके तईयार देख बोललन पाच साल से कहत रहनी बाकिर तु , उ बोलली हम का आजे लेखान पहीलाही टिकट ले आईल रहती । तबे उन

1. मान्यवर अभिषेक भोजपुरिया के कहानी - नसीब (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

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कवलेज के चउथी घंटी बाजल। रेशमा के अगराइल मन अइसन चहलस कि एके बेरी उड़ के उहां पहूंच जइतीं जहाँ उनकर मन-मीत अभिषेक इनका इंतजार में खड़ा होइहें। अभिषेक बाइलोजी के छात्र हउवन आ रेशमा कला के छात्रा हई। एही से दुनो आदमी एक बेरा ना मिल पावस। एगो आदमी के इंतजार करहीं के पड़ेला। अभिषेक पुस्तकालय के कोना में बइठल किताबन का ओर निहारत रहलें बाकिर मन मे रंगीन सपना के घटा उनहत रहे। गोर छरहर देह मुसकियात मन के भोराइल भाव इनका मन के मोह लेले रहे। उनका आँखी मे उमर आइल नेह-नहाइल मिलन के लसराइल भोर। जब बन संवर के रेशमा एक दिन गाँव के घोनसारी मे गइल रहली। ई ओह घरी ममहर मे रेशमा के गाँवे रहस। उनका के देखते कंठ से फूट पड़ल- "हमरा ओरी देख s तू एक बेरिया , हम मरी मरी जाइब तोहार किरिया।" रेशमा अचकचा के पीछे घुम के कुछ कहहीं के चाहत रहली ताले बाधार कीओर से ठाकुर साहेब के आवत नजर टकड़ाईल , जइसे कवनो परमाणु बम के विस्फोट हो गइल होखे। ठाकुर साहेब आवते गरजलें- ' बबुनी ते ताक इनका कीओर आ ना मुअलें त आज बेमुअवले ना छोड़ेम। '   इनका त जइसे करेंट मार दिहलस। उनकर दुनिया अन्हार होखे लागल। ऊ का जा