7. माननीया सुमन सिंह के कहानी - बेकहला (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)
" ए बचवा हई मोबईलवा पर का दिनवा भर टिपिर-टिपिर करत रहेला।कवनो काम -धंधा ना ह का तोहरे लग्गे आंय।" बेकहला बोलत-बड़बड़ात बचवा के गोड़तारी आके करिहांय धय के निहुर गइलीं। " तू आपन काम करा न , काहें हमरे फेर में पड़ल रहे लू।अबही जा इँहा से हमार दिमाग जिन खा। " आछा-आछा हमरे छन भर खड़ा रहले से तोहार दिमाग जर-बर जात ह।अइसन दिमाग के त हम बढ़नी बहारी ला।जा ए बचवा बूढ़ -पुरनिया से जे अइसे बोली ओके भगवान देखिहन।" " काहें , आज सबेरे से केहू भेटायला ना ह का कि हमरे पीछे पड़ गयल हऊ।अब ढ़ेर बोलबू न त अम्मा से कह देब।" बचवा खटिया छोड़ के अँगना ओरी दौरल गइलन बाकिर अम्मा के कमरा ओरी ना जाय के रसोई में घुस गइलन।उँहा कुछ मन जोग ना खाये के मिलल त बेकहला के लग्गे आ गइलन।बेकहला दलान में बइठ के तमाखू खात रहलीं। " ए आजी सुनत हऊ हो , कुछ खाये के बना दा।" बचवा निहोरा कइलन बाकिर बेकहला ना बोललीं। " अब देखा के कपार दुखवावत ह , हेतना देर से चरौरी करत हईं बाकिर एक्को बेरी ना बोलत हऊ।अबही खुनुस में कुछ टेढ़-सोझ बोल देब त लगबू हमार मुंह फूंके।" बचवा भुक्खन छटपटात