18. कुन्दन सिंह जी के तीनगो कबिता (32, 33, 90) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता


1. रात अभी भइले नइखे

के बा जेकरा झूठ-साँच के रोग कबो धइले नइखे।
पकड़ाइल ना कहेला पाप कबो कइले नइखे।
दिन भर सभ मेहरारुन के बहिन-मातारी कहेला,
छमिया कही के ना बोलाइ रात अभी भइले नइखे।
गोड़ परल भोट मिलल, नेता के मालिक जनता ,
ओकरा कुंडली में शायद राजयोग हइले नइखे।
चुनाव में जवन बँटाइल रहे उहो अभी भेंटाइल ना,
कामो करी बेचारा अबहीं ले मजदूरी पइले नइखे।
जूठ तनी गिर जाला एकर शोर जवारे हो जाला,
एह चाउर के भात बाकिर के बा जे खइले नइखे।
नइखे पसन मालिक के नोकर आपन बदल दिही
'कुन्दन' तहरा भेजा में बात कबो गइले नइखे।


2. चिन्हाते नइखे

केने जाता दुनिया बुझाते नइखे।
देखऽ ना लोगवा चिन्हाते नइखे।

पहिले निकलत रहे पूरा घुघ तान के
पूजत रहे मरद के प्राभु जी मान के
अब अपना हक पर लड़ जात बिया
बस अपने बात पर अड़ जात बिया
अब काहे दू केकरो से लजाते नइखे।
देखऽ ना फूलमतिया चिन्हाते नइखे।

गुल्ली चिक्का में बसत परान रहे
दउड़े कूदे में ओकर पहिला स्थान रहे
घर के सब लोग अब एकरा से ऊबल बा
मोबाइले के पोखरा में दिन-रात डूबल बा
कब्बो बहरी खेले जाते नइखे।
देखऽ ना पिंटुआ चिन्हाते नइखे।

हर जग-परोजन में सबसे पहिले आवत रहे
हम बेमार होखीं डॉक्टर किहाँ धावत रहे
अब खाली अपने बेटा के बात करेला
हमरा बेटवा से काजाने काहे दू जरेला
कहियो तरकारी मांग के खाते नइखे।
देखऽ ना पड़ोसिया चिन्हाते नइखे।

किताबन के साथे जिनगी के लुर देवे
कवनो गलती भइला पर देहिया थुर देवे
अब खाली बोर्ड पर खल्ली से पढ़ावेला
के-के समझल एपर ध्यान ना लगावेला
अब केहूओ एकरा से डेराते नइखे।
देखऽ ना मास्टरवा चिन्हाते नइखे।

गाँव से पहिले एकरा केतना लगाव रहे
चाचा, बाबा के मुँह पर एकरे नाव रहे
शहरिया में आके सबके भुलाइल बा
पइसा कमा के बाकी सब लुटाइल बा
कइसन राह धइलस ओराते नइखे।
देखऽ ना 'कुन्दनवा' चिन्हाते नइखे।

3. हरे राम हरे कृष्ण

आसरा के  लाल बुनिया,  रह रह  के  मुरी परे
मउअत बा निचकाइल, जियला से ना मन भरे
हरेऽऽऽए  राम,    राम  राम  हरे  हरे
हरेऽऽऽए कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हुलसे करेजा अभियो आँखिन में लोर बाटे
सुरुज चनरमा डूबल,   दियरा अंजोर बाटे
माने ना साँच बतिया, अपने मन के मन करे
हरेऽऽऽए  राम,    राम  राम  हरे  हरे
हरेऽऽऽए कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे

पाकी गइल बबरिया, सब चमरिया झुरियाता
मुट्ठी के  बालू  जिनगी, धिरहीं  धीरे  ओराता
संसरी मिलल बा गिन के फंसरी से काहे डरे
हरेऽऽऽए  राम,    राम  राम  हरे  हरे
हरेऽऽऽए कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे

बिधना के लेखा मनई, भला कइसे काट पाई
जे आग  डाली  जारी, उहे नू  आपन  कहाई
परिवार के रोवा के हंसते हम जाइब घरे।
हरेऽऽऽए  राम,    राम  राम  हरे  हरे
हरेऽऽऽए कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे


कुन्दन सिंह

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

24. जगदीश खेतान जी के दुगो कबिता (45, 46) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

श्री आशुतोष पाण्डेय उर्फ आशु बाबा के 1गो होरी गीत (10) - फगुआ (होरी गीत) संग्रह पहल प्रतियोगिता - 2018

सुश्री निशा राय जी के 2गो होरी गीत (13, 14) - फगुआ (होरी गीत) संग्रह पहल प्रतियोगिता - 2018