25. सतीश मापतपुरी जी के 3गो कबिता (47, 48, 49) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
1. देसवा
सोन के चिरइयाँ
देसवा
सोन के चिरइयाँ एकर मान रखिहऽ .
कवनो
आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
पंजरा ना सटे दुसमन दुर तक
खदेड़ीहऽ .
हाथ
जे उठावे ओकर पँखुरा कबरीहऽ .
देस
बदे मुट्ठी में परान रखिहऽ .
कवनो
आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
आँख
जे तरेरे ओकर ढेंढ़र नीकलिहऽ .
करे
जे गद्दारी देस से चिउंटी जस मसलिहऽ .
मन
में जय जवान - जय किसान रखिहऽ .
कवनो
आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
देस
आपन आबरू ह देस आपन सान ह .
देस
गुरुग्रंथ, गीता , बाइबिल , कुरान ह .
संख
के अवाज में अजान रखिहऽ .
कवनो
आवे ना बहेलिया धियान रखिहऽ .
देसवा
सोन के चिरइयाँ एकर मान रखिहऽ .
2. इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं
इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं .
इ नज़र में बसाइब त का फ़ायदा .
हमरी बतिया से छतिया जुडावल करीं .
इ करेजा लगाइब त का फायदा .
रउवा होंठवा के हरदम हँसी ही मिले .
बस खुसी ही सनम हर कदम पे मिले .
हमरा दिल पे सदा राज रउरे रही .
ताज हमके बनाइब त का फायदा.
छुट गइल साथ बात सब बिसर भी गइल.
लोर भुइयां गिरल गिर के जम भी गइल .
हमार जियरा जरल दूर से देख लीं .
हाथ आपन जराइब त का फ़ायदा.
3. देखिलs बिधाता कईसन आइल भुचाल बा
देखिलs बिधाता कईसन आइल भुचाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
राम के जमीन पे कन्हैया के देस में .
गाँव -गाँव शकुनी घुमेला कई भेस में .
तकला पे चारो ओर ईमान के अकाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
काहे के दईबा अइसन दुनिया बसवल .
का सोच दुनिया में अदिमी बनवल .
मुट्ठी भर आबरू भी एहिजा मोहाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
कब ले भरी ये साईं पाप के गगरी .
कब ले कफ़न बनी नईहर के चुनरी .
रात कईसन होखी जब दिन के ई हाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
2. इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं
इ सुरतिया के अंखिया से देखल करीं .
इ नज़र में बसाइब त का फ़ायदा .
हमरी बतिया से छतिया जुडावल करीं .
इ करेजा लगाइब त का फायदा .
रउवा होंठवा के हरदम हँसी ही मिले .
बस खुसी ही सनम हर कदम पे मिले .
हमरा दिल पे सदा राज रउरे रही .
ताज हमके बनाइब त का फायदा.
छुट गइल साथ बात सब बिसर भी गइल.
लोर भुइयां गिरल गिर के जम भी गइल .
हमार जियरा जरल दूर से देख लीं .
हाथ आपन जराइब त का फ़ायदा.
3. देखिलs बिधाता कईसन आइल भुचाल बा
देखिलs बिधाता कईसन आइल भुचाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
राम के जमीन पे कन्हैया के देस में .
गाँव -गाँव शकुनी घुमेला कई भेस में .
तकला पे चारो ओर ईमान के अकाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
काहे के दईबा अइसन दुनिया बसवल .
का सोच दुनिया में अदिमी बनवल .
मुट्ठी भर आबरू भी एहिजा मोहाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
कब ले भरी ये साईं पाप के गगरी .
कब ले कफ़न बनी नईहर के चुनरी .
रात कईसन होखी जब दिन के ई हाल बा .
अदिमी के नगरी में अदिमी बेहाल बा .
--- सतीश मापतपुरी
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