17. रितेश कुमार सिंह जी के एगो कबिता (31, 89) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

       
  1. "देशवा के सान" (एक फौजी के पत्नी के अपने पति को साहसिक पत्र)

देशवा के आन राजा तुहि बाड़ सान हो,
रखिह तु कस के दुश्मन के लगाम हो,
चाहे जाई जान पर जाय नाहीं सान हो,
तहरे पे बाटे राजा भारत माई के गुमान।

हमरो त बाटे आपन सिंदूरे पे घमंड,
राजा हमरो बाड़े सीमा पे प्रचंड।
मनवा में बाड़े नाहीं कवनो मलाल,
करत रह असहि राजा दुश्मन के संधार।

कर नाहीं कवनो चिंता फिकर हो,
रखले बानी राजा, हमहूँ घरवा सम्भाल,
जाई राजा जनवो ,पर तू रहब अमर,
सइयां आव ताटे सबके पसंद,
आपन रंग के उमंग मे रह,
अपनी देसवा के सेवा तूँ कर।


2. भोजपुरी ~

मान तू स्वाभीमान   तू ,
भोजपुरी भाषा महान तू।
सातवीं सदि से सोभित हज़ार वर्ष विशाल तू,
मातृभाषा कर्म तू, करोड़ों भोजपुरीयन के धर्म तू ।
लोक रंग ,जिन्दगी के उत्सव आन्नद तू।
गुरु गोरख नाथ के "गोरखवानी";
शुरू कइले भोजपुरी लेखन  के गौरव कहानी ।
बाबा भिखारी के "विदेशियाँ" के धुन ,
मोहे सबके मन,संत कबीर के अमर राग 'निरगुन'।
गितवा-गनइया ,प्यारी शोहर के सुर ;
तन-मन होखे विभोर भाव 'कजरी़' सुन ।
भोजपुरी तोहरो रंग हज़ार ,
रहे तोहरे से जिंदगी में बहार ।
मानवा बढ़इले, देशवा-विदेशवा मे भोजपुरियाँ ,
फिजी,गुआना,मॉरिशस ,
त्रिनाद- टबैगो अउर नेपालो में धड़के दिल भोजपुरियाँ ।
भाषा भोजपुरी तू सबसे महान ,

सत-सत नमन करे ,भोजपुरी तोहके प्रणाम ।

रितेश कुमार सिंह
जिला: गिरिडीह
JHARKHAND 815301

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खुब भाई,नीक लागल पढ के ,एगो जवान के पत्नि के मनो दशा अच्छा ढंग से प्रस्तुत कईले बाड़। शुभकामना

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