33. मुईनुद्दीन शाह जी के 2गो कबिता (65, 66) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

   
   1. एगो पाती, बेटी के नाव
 हमार प्यार, हमार दुलार
 हमरे जिगर के टुकड़ा,
 हमार बेटी तूं हमार सनमान,
 हऊ तूं हमार अभिमान हो,
 हमार कपार पर इ जवन पगड़ी बंधल बा,
 इ पगड़ी तोहरे ह संस्कार हो।
 ए पगड़ी के लाज तूं हमेसा रखिहS,
 हमार बेटी. तूं चहिह की इ पगड़ी,
 तोहरे बाबूजी के सर पर हमेसा अइसहीं बँधल रही,
 अउर समाज में तोहरे बाबूजी के सनमान में,
 सबके पगड़ी नतमस्तक रही,
 इहे बिनती बा तोहरा से,
 हमार लाडो, हमार धिया।

     2. याद आवे माई-बाबू

 बानी बेकरार हम आके सहर में,
 याद आवे माई-बाबू अंसुअन की धार में,
 के ओन्हे देखत होई, के ओन्हे ताकत होई,
 दाना-पानी देत होई, खतिया बिछावत होई।
 के हो जगावत होई, उन्हें भिनसार में,
 के हो कहत होई, खालS माई खनवा,
 के हो कहत होई, पीलS बाबू पनिया,
 हूक उठता हमरे दिल में, जिगर में।
 जिनगी में नके बानी हमहीं सहारा हो,
 हमहीं उनके चंदा बानी, हमहीं सितारा हो।
 हमहीं छोड़ दीहीं कइसे उनके मजधार में,
 बानी बेकरार हम आके सहर में।
    
      मुईनुद्दीन शाह
      पनवेल, नई मुंबई

    मोबाइल- 9820448244

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