37. निशा राय जी के 2गो कबिता (गीत) (73, 74) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

1. हम गांव क हईं गँवार सखी

हम गाँव क हईं गँवार सखी! हम ना सहरी हुँसियार सखी! 
बस खटल करीला सातो दिन, 
आवे न  कबो  अतवार  सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

 लीची,अनार,अमरूद,आम,
सांझो बिहान खेती क काम,
घेंवडा़,लउकी,धनिया जानी, 
ना जानीं हरसिंगार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

इहवाँ जमीन बा बहुत ढेर,
असहीं उपजे जामुन आ बेर,
इ गमला में के फूल ना ह, 
जे खोजे सवख सीगांर सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

गोबर-गोथार , चउका-बरतन,
अंगना,दुअरा सब करीं जतन,
दम लेवे भर के सांस न बा,
बानीं तबहूं बेकार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

गोबर के चिपरी पाथीला,
हरिहर डाढ़ी ना काटीला,
पीपर तुलसी आ नीम संघे , 
मानेला सब तिउहार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी !

कागा के हमी जगाईला,
मुरगा से बाग दिआईला,
गईया,बछरू ,कूकुर ,बिलार
ई सब हमरा परिवार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

सूरूज मल जब जल पावेंलें,
तब दुनियां दुनियांं धावेलें,
हमहूं धाईं उनका पाछे ,
जबले ना भइल अन्हार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

इहवाँ इसकूल ना अस्पताल,
फइलल माछी मच्छर के जाल,
बिजली पानी घर सौचालय,
हवे सपना के संसार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

गउँओं में नेटवा आइ गइल,
मनई से मनई दूर भइल,
सेल्फी क रोग लगल अइसन,
सब लोग भइल लाचार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!

ओल्हा पाती के 'टेम' गइल,
बा घर में बिडियो गेम धइल,
टीवी आ फोन  क  खेला में,
बचवा भ गइल बीमार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी! 
 हम ना सहरी हुँसियार सखी! हम गाँव क हईं गँवार सखी!       

                                         
    
2.  कलयुग के रंग

चाहे घर होखे चाहे गाँव होखे,
चाहें जिला देस विदेस होखे,
सब जघे एके बाजा बजावत बा।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।

धन खातिर बा पूत कसाई भइल,
सास बहू के गला दबावति बा,
धनवे बदे भाई भाई दुसमन
जान लेवे खातिर दउरावत बा।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।

इ हिन्दू हवे ,इ ह मुसलिम,
इ सिख ,इसाई, यहूदी हवे,
धर्म खातिर इहाँ उत्पात मचल,
आदमी आदमी के मुआवत बा।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।

गढ़ले प्रभु जी सबके एके खां,
एके हाड़ मास लगा दिहले,
उनहीं के बनावल हवें दुनियांं,
काहें लोगवा भेद लगावत बा।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।

एक दिन इ जंग हो जाई खतम,
सबका मन से मिट जाई भरम,
सब चिरयी नियर जाहा चाही घुमी,
अउरी प्रेम के सीतल बयार बही,
इहे सोचि के मन बहलावत बा।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।।
कलयुग आपन रंग देखावत बा।।


                          निशा राय
                          गोरखपुर

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