36. धर्मदेव चौहान जी के 2गो कबिता (गजल) (71, 72) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
गज़ल -१
लोग झगरा के जरs खोजता |
एने- ओने से लरs खोजता | |
जेकरा चले के धराने नईखे |
उहो उड़े के परs खोजता ||
जीत के गईलें जबसे नेता जी |
तबसे पूरा शहरs खोजता ||
रेड़ पूरधान भईल बा जबसे |
तबसे जनता जहरs खोजता||
फेंड़ बोवता ता जे बबूरे के |
उहो आमे के फरs खोजता ||
बात आईल बा जबसे दउलत के |
भाई भाई के सरs खोजता ||
कोख में मारल जे अपना बेटी के |
उहो कनिया सूघरs खोजता ||
गज़ल -२
तोहार कवनो ज़बाब नाही बा |
तोहरा जस आफ़ताब नाही बा ||
कहीं भी आज ले ए दुनिया में |
तोहरा जइसन गुलाब नाही बा ||
लोग हमके ख़राब कहेला |
हमरा जइसन ख़राब नाही बा ||
अपना दिलवा के तू पढ़ल करs|
एसे बढ़िया क़िताब नाही बा ||
माई बाबू के तू सेवा करीह |
एसे बड़हन ख़िताब नाही बा ||
इ जिनगी हवे फुटकर पइसा |
एकर कवनो हिसाब नाही बा ||
हमके देख कि हम बिहार हईं |
हमसे बड़हन नबाब नाही बा ||
धर्मदेव चौहान
शोध छात्र,
चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
कानपुर
Mob.No.-9792724266
Email-dharmadevchauhan@gmail.com
वाह वाह धरमेन्द्र
जवाब देंहटाएंसी एस ए में को से विभाग मे सोध कर रहे हैं फेसबुक पर बताईयेगा