32. सुनील प्रसाद शाहाबादी जी के 2गो कबिता (63, 64) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

1)         रात के माथ प
रात के माथ प दिअरी बार अइनी।
हम अँजोरिया के  सँवार अइनी। १
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चाँद सूतल रहो ओढ़ के बदरी,
राह लउकल नजर उतार अइनी। २
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ए अन्हरिया काहे लजालू अब,
नींद अखियाँ के सब हार अइनी। ३
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जिनगी जिहीँला असहिं कागज पे,
ओठे मुस्की हलुक पसार अइनी। ४
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देखा देखी में बहक गइनी हमहूँ,
तोहार सभा में शेखी बघार अइनी। ५
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लोग माटी भाषा जब रहे आपन,
का गलत कइनी जे दुलार अइनी।६
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मिलल का एगो सहारा तिनका के,
साथे ओकर बहत किनार अइनी।७
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 2)           निरगुन

मेला घूमे गईलू हेरा गईलू बबुनी।
कवना मुसीबत में घेरा गईलू बबुनी।
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रिसता नाता के लागल बाजार बा।
मोह भरम इहाँ साह-सहुकार बा।
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किने के फेर में बेचा गईलू बबुनी।
मेला घूमे गइलू हेरा गईलू बबुनी।
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दिन ह जवानी के गोड़ बहक जाला,
रsसम रिवाज के टूट जाला ताला।
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अपने ही करनी से डेरा गईलू बबुनी
मेला घूमे गईलू हेरा गईलू बबुनी।
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लोरवा पीएलू आ आह भरेलू
भीतरे भीतर तिल-तिल जरेलू।
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काल के कोल्हू में पेरा गईलू बबुनी।
मेला घूमे गईलू हेरा गईलू बबुनी।
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खोजत खोजत पिआ देखs अइलें।
चार कहार मिली डोलिया उठइलें।
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लहकत चिता पे सेरा गईलू बबुनी।
मेला घूमे गईलू हेरा गईलू बबुनी।
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पता (पत्र-व्यवहार)
सुनील प्रसाद शाहाबादी
लुधियाना, पंजाब


स्थायी पता-
ग्राम व पोस्ट- अमरई नवादा
भोजपुर (आरा), बिहार

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