43. डॉ मनोज कुमार सिंह जी के 1गो कबिता (गीत) (84) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

दोहा मनोज के...

सुन्नर,मधुरी बोल आ, लेके सहज सनेस।
भोजपुरी के बेल इ,फइलल देस बिदेस।

बीस करोड़न लोग के,जीवन के रस धार।
भोजपुरी माँगत बिया,अब आपन अधिकार।।

भोजपुरियन के देखि लीं,मन के मधुर सुभाव।
रहल कबो ना आजु ले,हिन्दी से टकराव।।

भोजपुरियन से बा भरल,यूपी अउर बिहार।
उहे बनावेला सदा,दिल्ली के सरकार।।

अक्खड़पन भरपूर आ,दिल से सहज पवित्र।
स्वाभिमान भोजपुरिया,होला शुद्ध चरित्र।।

माई भासा ही असल,मनई के पहचान।
दोसर भासा ले सकी, ना ओकर स्थान।।

संस्कृति के पहचान के,सबसे सुन्नर नेग।
भासा जब साहित्य के,ओर बढ़ावे डेग।।

अपना भासा के अलग,होला कुछ जज्बात।
बड़ी आसानी से कहे,दिल के सगरी बात।।

भोजपुरी पहुँचल कबो,ना राजा दरबार।
सदा उपेक्षा ही मिलल,राजतंत्र के द्वार।।

भोजपुरी के नाम पर,झंडा आज तमाम।
खुद के जिंदाबाद बा,औरन के बदनाम।।

भोजपुर में भोजपुरी,नया कवन बा बात।
अब त एहके बोलताs,कलकत्ता-गुजरात।।

भजन भजेलें उ भले,भोजपुरी के रोज।
लउके भासा से अधिक,उनकर आपन पोज।।

भोजपुरी फुहड़ता पर,करिके कड़क प्रहार।
सुघर सही हर बात के,निसदिन करीं प्रचार।।

कतना आज समाज में,जर्तमुआह सुभाव।।
बिना बात प्रतिशोध में,लउके गाल बजाव।

गाँव गाँव में देख लीं,जे जे भइल प्रधान।
शहर शहर में बन रहल,ओकर आज मकान।।


डॉ मनोज कुमार सिंह
स्नातकोत्तर शिक्षक,हिन्दी

पता -
जवाहर नवोदय विद्यालय, जंगल अगही,
पीपीगंज,गोरखपुर,पिन कोड-273165
ईमेल drmks1967@gmail.com

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