29. सत्येन्द्र गोविन्द जी के 2गो कबिता (56, 57) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
१. पल में का होई.........
पल में का होई अनिश्चित बा,
के हँसी के रोई अनिश्चित बा।
बहुते ब्याकुल बाटे आज मोर मनवां,
सपने ना रह जाए देखल सपनवां..।
बारिश के धार ध के झुलूवा झूलीं हम,
अईसन झूलीं कि आसमान जाके छू लीं हम।
किसमत के खेला मेहनतवा से खेलतीं,
सबका के पीछे छोड़ी हमीं आगे हेलतीं।
देख के सफलता झुक जाईत आसमानवां,
सपने ना रह जाए....
के हँसी के रोई अनिश्चित बा।
बहुते ब्याकुल बाटे आज मोर मनवां,
सपने ना रह जाए देखल सपनवां..।
बारिश के धार ध के झुलूवा झूलीं हम,
अईसन झूलीं कि आसमान जाके छू लीं हम।
किसमत के खेला मेहनतवा से खेलतीं,
सबका के पीछे छोड़ी हमीं आगे हेलतीं।
देख के सफलता झुक जाईत आसमानवां,
सपने ना रह जाए....
मारीं हम एगो अईसन अचूक निशाना,
देखे त देखते रह जाए ई जमाना।
सबसे अलग रहीं सबका से हट के,
समर में हमरा के केहू नाहीं पटके।
देखे त देखते रह जाए ई जमाना।
सबसे अलग रहीं सबका से हट के,
समर में हमरा के केहू नाहीं पटके।
हार गईला पर निमन लागे नाहीं खानवां,
सपने ना रह जाए...
सपने ना रह जाए...
साँच के डगर पे अगर घारवा से बहरीं,
मंजिल से पहिले हम कतहूँ ना ठहरीं।
पत्थर पड़े चाहें आवे तूफ़ान हो,
सामना करीं हम बनके चट्टान हो।
कर्म पथ पे काहे ना चल जाए जानवां,
सपने ना रह जाए...
मंजिल से पहिले हम कतहूँ ना ठहरीं।
पत्थर पड़े चाहें आवे तूफ़ान हो,
सामना करीं हम बनके चट्टान हो।
कर्म पथ पे काहे ना चल जाए जानवां,
सपने ना रह जाए...
२. कईसे कहीं कबले होई बेटी के सगाई हो
अँखिया में लोर भरल आवता रोवाई हो,
कईसे कहीं कबले होई बेटी के सगाई हो।
कईसे कहीं कबले होई बेटी के सगाई हो।
लइका खोजे में कहाँ-कहाँ ना भटकनी,
देबी-देवता के दुअरा माथा हम पटकनी।
देबी-देवता के दुअरा माथा हम पटकनी।
लइका मिलल त पीछे परल महँगाई हो,
कईसे कहीं कबले...
कईसे कहीं कबले...
दहेजे देवे में एको धुर नाहीं बाँची,
ऊपर से लइका के आर्डर आपाची।
ऊपर से लइका के आर्डर आपाची।
परे बा समझ से हमरा कहाँ से दिआई हो,
कईसे कहीं कबले...
कईसे कहीं कबले...
हार गइनी अब केतना माथा_पेंची करीं,
पगड़ी उतारी केकरा पऊँवां में धरीं।
पगड़ी उतारी केकरा पऊँवां में धरीं।
लागता कि जिनगी पुरा नईहरे बिताई हो,
कईसे कहीं कबले...
कईसे कहीं कबले...
बेटो वाला कबो कवनों मुसीबत में पड़ेला,
कवना गुरूरे लोग एतना अकड़ेला।
कवना गुरूरे लोग एतना अकड़ेला।
कहिया "गोविन्द" के बतिया सबका बुझाई हो,
कईसे कहीं कबले...
कईसे कहीं कबले...
©सत्येन्द्र गोविन्द
मुजौना,नरकटियागंज,
बेतियाँ,बिहार
मो०नं०:-8051804177
मुजौना,नरकटियागंज,
बेतियाँ,बिहार
मो०नं०:-8051804177
बहुत नीक
जवाब देंहटाएंअती सुन्दर
जवाब देंहटाएंबाड़ा नीक लागल पढ़ के
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