44. नवीन कुमार पांडेय जी के 2गो कबिता (गीत) (85, 86) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

1. का कहीं कुछ कहल ना जाता

का कहीं कुछ कहल ना जाता
आ बिना कहले रहल ना जाता।

उग्र राष्द्रवाद बिन मौसम के पानी
आ छ्द्म धर्ममिरपेक्षता छाता,
बन के उग्र अब लड़ता दुनुं
हो गएल उदारवाद लापाता।

का कहीं कुछ कहल ना जाता
आ बिना कहले रहल ना जाता।

दल आ शासन के बात का रखीं
बन गएल बा दुनुं जांता के चक्की
आपस में मिलजुल  चलता दुनुं
आ बिचहीं  में जनता पिसाता ।का कहीं कुछ . . . .

जात धरम में दुरभाव बढ़ऽता
शासन के देहल घाव बढ़ऽता,
रक्छक अब भक्छक बन बइठल
बचइहऽ भारत के हे भाग्यविधाता।
का कहीं कुछ कहल ना जाता
आ सोंच-सोंच के मन घबराता।



2. लोगवा त लाखे मिलेऽला जिनिगिया में

लोगवा त लाखे मिलेऽला जिनिगिया में
कइसे केहु चितवा के चोर बन जाला ।

चितवे ली चानवा के तरुणी जे रतिया में
रह - रह के मनवा चकोर  बन जाला ।

चित् के चिरईया जे कुहुके पिया बिनुं
देखते  सजन के ई मोर बन जाला ।

देखे सपनवा में सजना के जब -जब
नींदिया टुटे  रतिया भोर बन जाला।

बाटे जे पनीया ई देहिया के भीतर
निकले नयन से त लोर बन जाला ।

जवने पवनवा फगुनहटा ह फागुन में
तवने चइऽत  में झकोर बन जाला ।

नवीन कुमार पांडेय
ग्राम+पोस्ट-जयसिंहनुर थाना-तुरकौलिया जिला-पूर्वी चम्मारण बिहार

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