5. मान्यवर आदित्य प्रकाश अनोखा के कहानी - बलि के बकरा (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

दीना आ दीना बो किरिन फुटते खेत ओर चल दिहल, पीछे-पीछे डेग में डेग मिलावत उनकर चार- पांच गो बकरी आ दु गो बकरी के बच्चा भी चलल। काल्हुए त दीना के एगो पाठी दोसरा के खेत चरत पकड़ा गइल रहल। लाख बिनती- हंथजोरी के बादो पटवारी उनकर पाठी ना लौटइले रहे। हार-पाछ के दुनु बेकत पटवारी के दुआरा से अइसन लवट के गइल रहे लो जइसे आपन संतान कोई छोड़ी के जाला। रतिया बिना खइले सुतल लो आ किरिन फूटते रोज खानी आपन बकरी लेले खेत कावर चलल बा लो। दीना के मन मे पटवारी के बात ठनकत रहे, देख दिनवा तोहर पाठी हमर खेत चरल बा, एक बेर के होखे त छोड़ दीं, ई तोहनी के रोज के नटंकी हो गइल बा। पाठी तोहर हम एके सरत प छोरम। आपन हउ मानता वाला खंस्सी बा तवन हमरा के दे दे। आरे उ का करबे रख के, आखिर मानता वाला दिने उ ते काली माइ प चढ़ा देबे, ओमे तोरा का भेंटी ने पइसा ने मांस, हम तोहर पाठी लावटा देत बानी हउ खंस्सी हमरा दे दे। दिनवा कहलस मालिक उ त मानता के बा, काली माइ के हम का चढाएम, काली माइ सारा बिनास कई दिंहें, मालिक गोर पड़त बानी अबसे अइसे ना होइं हमार पठरुआ दे दीं मालिक। मालिक झरपेट के भगा देहले रहे दीना के, आ साथे-साथे चेता के कहलस की खंस्सी त तोहर हम लेइये लेहब, के माहे तू चँवर जइबे दिहाड़ी मजूरी करे, फेर कबो ने कबो खेत मे परबे करि ताहार जनावर। होली आवता, अबकी होली में तोहरे खंस्सी हमनी खायब जा। दीना के मेहरारू टोकली, ए जी बचवा के सम्हारि ना त लागि दोसर के खेत चरे। दीना एकाएक चिंहकलन, आ सारा बकरिया के रस्सी एक साथे कस के पकड़ लिहलन। अपना मेहरी से कहलन सुनतारु हो खस्सीया देके पठरुआ छोड़ा लिहिं का।
राम-राम ई का कहतानी जी। काली माइ के सराप लागी। जाय दी छोड़ी, बुझाता एगो पाठी पकड़ के राजा हो जइहें। अब पाठी के आस छोड़ दिहिं। दीना बतियावे में का लगलन, उनका पता ने चलल की कब उनकर खस्सी फेर ओहि पटवारी के खेत चरे लागल। अब त दिना के कटले खून ना, दउड़लन खस्सी के पीछे, हाथ से रस्सी जेहि छोडलन सब बकरिया जेने तेने दोसरा के खेत चरे लागल, अब दीना कभी कवनो के पकड़स त कभी कवनो। कवनो जाके खबर दे आएल पटवारी के की दिना के बकरी फेर तहरा खेत मे पड़ल बाड़ी स। अबका होखो, खेतवाहवा के त फावे में जइसे घीव मिल गइल होखे। होली के दिन खूब मांस आ दारू चलल।
आ बरिस दिन के दिन दीना आ उनकर मेहर घर मे बइठ के बाबू के लास के भीरी बइठ के रोअत बा लो। जवने दु पइसा बकरा- बकरी से आवत रहे ओहसे बुढऊ के रोग-बीरो में खरचा होत रहे।
अब ना दीना भीरी बकरी बा ना रोगिआह बुढ़ बाप। रह गइल बा दु गो छोट-छोट बकरी के बच्चा।
दुनु बच्चा सियान होत बारे स, फेर कवनो पटवारी भा जमीदार के हत्था चढ़े खाति।

आदित्य प्रकाश अनोखा

छपरा बिहार

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