4. मान्यवर लोकेंद्र मिश्रा के कहानी - पुजारी बाबा के लोटा (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

पुजारी बाबा के गाँव भर इज्जत करेला आ जे जहें देखेला तहें पांव लागीं बाबा, गोड़ लागीं बाबा शुरू क देला। पुजारी बाबा के उमिर लगभग चौरासी- पचासी बरिस होत होई, पातर देहिं के ऊपर खाली एगो ठेहुन ले धोती, बांया हाथ में उनका से ऊँच एगो छड़ी आ दहिना में एगो फुलहा लोटा। पुजारी बाबा कहीं जास बाकी उनकर लोटा उनका साथहीं रहे। कई लोग उनका से लोटा ले लेके मजाक भी करे बाकी ऊ मजाक के बात हंसि के उड़ा देस। पुजारी बाबा ऐसे त जात से बाभन रहने बाकी कब्बो कवनो जात के आदमी के नीचा ना बुझने सबसे एक जईसन बेवहार रहे, एगो इहो कारण रहे की पूरा गाँव पुजारी बाबा के इज्जत करे। जवना दक्खिन टोला में केहू जाए ना ऊ ओहू जा अगर कवनो गाई - भईंस बेमार पड़ जाव त झारे फूंके पहुँच जास। एक बेर के बात ह रहसु चमार के गाई के तबियत खराब हो गईल ,जब पुजारी बाबा के पता लागल त ओबेरा
ऊ गाई  के नाद साफ़ करत रहने , सब छोड़ - छाड़ के चमरटोली में गइने आ गाई के झार- फूँक कईने, पूरा गाँव उनका प तब बहुत खिसियाईल रहे बाकी पुजारी बाबा कब्बो केहू के खिसियाईल के माख ना कइने। पुजारी बाबा के लोटा के ले के हमरी मन में बहुत शंका रहे की भाई ई पुजारी बाबा हमेशा लोटा ले के काहें चलेने। अब लईका के मन अगर एक बार शंका भईल त फेर समाधान खाति बेचैन रहेला। पुजारी बाबा से कई बेर हम पूछनी की ए बाबा ई लोटवा ले के काहें घूमत रहेनी, बाकी बाबा कबो बतवलें ना।
एक दिन पुजारी बाबा बईठ के रामायण पढ़त रहने तब हमहूँ पहुँच गइनी आ रामायण सुने लगनी। रामायण खतम भईल त हम पुजारी बाबा से पूछनी की ए बाबा बताईं ना ई लोटवा के बारे में रउआ बैंक प जानी तब्बो लोटा ले के जानी, कचहरी जानी तब्बो लोटा ले के जानीखेत कोड़े जानी तब्बो। पुजारी बाबा मूड में रहने  बतावल शुरू कईने।
बाबू  जब हम सतरह साल के रहनी त हमार बियाह तय भईल रहे बिसुनपुरा । तब आज की तरे मोबाइल फोन ना रहे ना लईका - लईकी एक दूसरा के देखे बियाह की पहिले। हम अपना संघतिया की साथे बिसुनपुरा पहुँच गइनी सीताराम तिवारी की घरे। कई गो उतजोग लगइनी आ उनका के एक बेर देखि लेहनी। अतना सुन्नर लईकी हम पहिली  बेर देखले रहनी
साँझ खां हमनी के गाँवे आ गइनी जा बाकी हमार मन गाँवे ना लागे बार- बार मन करे की हम उनका के देखते रहीं । बियाह तय भईला की बाद हम कई बार बिसुनपुरा गइनी कवनो ना कवनो बहाना से भोरे साइकिल से चल जाईं आ दिन भर एन्ने ओन्ने बिसुनपुरा में घूमत रही बाकी पूरा ध्यान रहो की केहू चिन्हे ना आ केहू तरे एक बेर उनके देखि लीं आ फेर साँझ भईला प घरे चलि आईं।
तिलक के दिन धरा गईल रहे बाकि अभी तिलक आ बियाह में 2 महीना के समय रहे। हम एक्को दिन उनके देखले बिना ना रही पाईं, हम धीरे धीरे उनकी गाँवे जा के उनसे चोरी छिपे मिले लगनी। हमरा आ उनका में प्यार बढ़त रहे, हमनी के दिन भर में कई - कई बेर मिल लीं जा ।  धीरे धीरे तिलक के दिन नजदीक आ गईल आ हमार तिलक चढ़ल ओहि में ई लोटा मिलल रहे। बड़ा धूमधाम से बारात निकल आ हमार बियाह हो गईल बाकी पहिले के समय में गवना होखे बियाहे की साथ बिदाई ना होखे। खैर एक साल के गवना रखाईल रहे ,एही बीचे हम कमाए चलि गइनी बहरा। अब उनसे हम बहरा जईला की बाद मिल त पईतीं ना, बस इहे फुलहा लोटा उनकर निसानी बुझ के अपना साथे लेले गइनी। दू महीना बाद हमरी लगे एगो चिठ्ठी आइल चिट्ठी बाबूजी के रहे ओमे लिखल रहे की गाँव में हैजा फ़इल गईल बा आ लोग ए महामारी में मरत जाता। हमरा पता लागल की शकुंतला भी ओ महामारी में हमके छोड़ के एह दुनिया से चली गईली। हमरा आँखि के सोझा अन्हार छा गईल जइसे हमके कठया मार गईल होखे। तब्बे से हम ई उनकर निसानी लोटा के हमेशा अपना साथे रखेनी। एतना कहला के बाद पुजारी बाबा  चुप हो गइने आ उनका आँखि से लोर बहि चलल। हमरो आँखि के कोर भींज गईल रहे। हमरा आज ओ लोग पर तरस आवत रहे जे पुजारी बाबा के लोटा के लेके मजाक उड़ावत रहे । शकुंतला के मरला के बाद गाँव - घर के लोग बहुत कहल पुजारी बाबा से की तूँ दोसर बियाह क ल। हेतन लमहर जिनगी अकेल कईसे कटी। जिंदगी में जिये खाति कवनो न कवनो बहाना त होखहीं के चाहीं । बाकी पुजारी बाबा सबसे एक्के बात कहस की जेसे एक बेर मन लाग गईल जब ऊ हमार साथ ना दिहलस त दोसर का दी। पुजारी बाबा फेर जिनगी भर बियाह ना कईने। हं उनकी कमरा में शकुंतला के एगो फोटो जरूर टाँगल रहे आ पुजारी बाबा ओपर रोज गेंदा के फूल के हार पहिरावस। आज ए घटना के साल भर से ऊपर हो गईल हम कॉलेज जात रहनी तबले  किसुनदेव चाचा मिलने आ बतवने की पुजारी बाबा आज सबेरे ई दुनिया छोड़ देहने। हम देखनी पुजारी बाबा के लाश सुतावल रहे आ उनकर लोटा ओहिजा एक किनारे उलटल पड़ल रहे । हम लोटा सीधा कइनी आ लोग पुजारी बाबा के लाश ले के श्मशान घाट प चल दिहल। पुजारी बाबा के अंतिम संस्कार के बाद ओहि लोटा में उनकर हड्डी ध के गंगा  माई में बहा दिहल गईल। मरला की बादो पुजारी बाबा शकुंतला से अलग ना भइलें।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
    देवरिया

( पहिला कहानी ह भोजपुरी में हमार ,भूल - चूक खाति माफ़ी)

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