1. मान्यवर अभिषेक भोजपुरिया के कहानी - नसीब (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

कवलेज के चउथी घंटी बाजल। रेशमा के अगराइल मन अइसन चहलस कि एके बेरी उड़ के उहां पहूंच जइतीं जहाँ उनकर मन-मीत अभिषेक इनका इंतजार में खड़ा होइहें। अभिषेक बाइलोजी के छात्र हउवन आ रेशमा कला के छात्रा हई। एही से दुनो आदमी एक बेरा ना मिल पावस। एगो आदमी के इंतजार करहीं के पड़ेला।
अभिषेक पुस्तकालय के कोना में बइठल किताबन का ओर निहारत रहलें बाकिर मन मे रंगीन सपना के घटा उनहत रहे। गोर छरहर देह मुसकियात मन के भोराइल भाव इनका मन के मोह लेले रहे। उनका आँखी मे उमर आइल नेह-नहाइल मिलन के लसराइल भोर। जब बन संवर के रेशमा एक दिन गाँव के घोनसारी मे गइल रहली। ई ओह घरी ममहर मे रेशमा के गाँवे रहस। उनका के देखते कंठ से फूट पड़ल- "हमरा ओरी देखs तू एक बेरिया, हम मरी मरी जाइब तोहार किरिया।" रेशमा अचकचा के पीछे घुम के कुछ कहहीं के चाहत रहली ताले बाधार कीओर से ठाकुर साहेब के आवत नजर टकड़ाईल, जइसे कवनो परमाणु बम के विस्फोट हो गइल होखे। ठाकुर साहेब आवते गरजलें- 'बबुनी ते ताक इनका कीओर आ ना मुअलें त आज बेमुअवले ना छोड़ेम।'  इनका त जइसे करेंट मार दिहलस। उनकर दुनिया अन्हार होखे लागल। ऊ का जानत रहलें कि ठाकुर साहेब लगहीं खइनी बनावत केहु से बतियावत रहलें। गाँव के लोग बीच बचाव कर के मनीला ठंढावल। तब सांस मे सांस आइल। आजो ऊ दृश्य याद आवेला त मन मरमरा जाला। बाकिर आज त उहे रेशमा उनका करेज के कसक हो गइल बाड़ी।
 अभिषेक! ए अभिषेक! आज त हिन्दी के क्लास मे मजा आ गइल हो। प्रोफेसर साहेब पढावत रनी ह त बतवनी ह कि 'साली' 'जीजा' शब्द कइसे बनल। उहां के बतवनी ह कि - 'जब करेजा मे साली तबे ऊ साली ह। ओकरा के देख के जब मन अघा जाव - जी जाव तब ऊ 'जीजा' ना त कवना बात के जीजा। का अभिषेक, ई बात ठीक ह?' अभिषेक उनका के का जबाब देस। कहलें- 'अभी अनुभव नइखी कइले।' कहे के त कह दिहलें बाकिर उनका बुझाइल जइसे ऊंट चोरा के खले खले जात होखस। उनका याद पड़े लागल जब भउजी के कहला पर भैया के साली बोलावे गइल रहस। रास्ता भर उनका छोह-छाव के चलते रस्ते ना बुझाइल। ऊ चलते चलत बइठ जास आ कहस कि अब हमरा से नईखे चलल जात। हम जब बाँह ध के उठाईं त कहे लागस - 'ए जी, बिना तिलके दहेज के हमार हांथ बांह ध लेनी, त ठीक बा अब त हम राउर हो गइनी। अब त हम रउरे घरे रहेब। आजो हमके ई बात करेजा मे सालेला। साचहूँ साली- साली आ करेजा मे साली।'
'ए जी, का सोचे लगनी।' ऊ अचकचा के जगलें। ऊ कहली- 'आज हम कुछ पुछे के चाहत बानी। हमरा मन-मंदिर के देवता अइसे कब ले चली। ई पूजा के फूल देवता के चरण मे कब ले चढ़ी?' अभिषेक गम्भीरता से तुरंत कहलें - 'रेशमा, तहरा के हम परान से बेसी मानिले। आपन जिनगी के हरेक खुशी दे देवे के तइयार बानी। बाकिर तू बतावs जिनगी भर के साथी ई समाज बने दी का? एक त तहार जात ना हईं। दुसरे गरीब बाप के बेटा।' आपन मुड़ी अभिषेक के छाती मे सटाके कहली - 'प्रेम मे जात पात के देवाल ना होखे। ई दूगो मन के सउदा ह। दुनिया मे कवनो अइसन देवाल नइखे जवन तहरा के हमरा से अलग कर देव। रेशमा भावावेश मे आ के झकझोर के पुछली- कहां गइल तोहार कहनाम, ऊ आदमी कइसन जेकरा के समाजे बदल देव।'
 ' रेशमा तू समाज के बखान नइखु जानत। इहां के लोग बड़ी जरतमुअना ह।'
 'हम खुब जानत बानी। मरद-मेहर राजी त का करी काजी। बस, अब त एके गो रास्ता बा- हमरा के ले के भाग चलs। बोलs बा मंजूर?' रेशमा पुछली।
 'भागला के नाम कायरता ह रेशमा। तहरा से वादा करत बानी। अपना गोड़ पर खड़ा भइला के बाद तहरा के हम दुलहिन बना ले जाइब। अभी त सबुर करs'
रेशमा खिसिया के अतने कहली - 'तुहूं मरदे हउअ का? आ चल देली। उनका बुझाइल जइसे मनवा के साध के सराध हो गइल होखे। 
अभिषेक मेडिकल कम्पलीट करे खातिर पटना पढे चल गइलन। रेशमा अभिषेक के बिना मउर गइली। रेशमा आ अभिषेक के प्यार के बात गाँव भर मे तेल खानी फइल गइल। रेशमा के बाप ई सुन के जमीन मे गड़ गइलें। सय मुट्ठी मे एक मुट्ठी हो गइलें। 
अब रेशमा के बाबूजी दिन-रात एही फेरा मे लागल रहस कि बिटिया के कइसे हाथ पियर कर दीं। छाती पर के बोझा कइसे उतरी। बचपन से पोसल बेटी सरधा के सुरत आ ममता के मुरत रहस बाकिर दहेज के एह जबाना मे छाती के बोझा हो गइल रहली। शादी के फेरा मे दिन-रात छिछियाइल फिरस। गोड़ के चाम खिया गइल। कहीं घर मिले त वर ना आ वर मिले त घर ना। जहाँ दुनू रहे उहाँ मोलाई सुन के आँखी मे जोन्ही फुलाये लागे। जेकरा शुद्ध पलानियो नइखे ओकर मिलाई सुन के करेज दलके लागे।
ठाकुर साहेब के चिन्ता मे डूबल देख के रेशमा के माई कहली - 'ए रवंs, का चिन्ता मे डूबल बानी। अपना बबुनी मे कमिये का बा? अइसन सुधर, सुशील आ साफ केकर बेटी बा। इनका कवन चीज के लूर नइखे। सिआई-फराई से खाएक बनावे तक।' रेशमा के बाबु खिसिया के कहलें- 'एह घड़ी लोग रुपया के जामल भइल बा। रुप रंग पुछे ना कोई, रुपिआ देई से समधी होई। पइसा के आगा के रुप रंग पुछत बा हो। भगवान का जाने बबुनी के भाग मे का लिखले बाड़ें।
ठाकुर साहेब घुमत-घुमत अबकी रामपुर गाँव मे शादी ठीक कइलें। लड़िका जनता बाजार मे स्टूडियो रुप श्री के निमन बिजनेस सम्हरले रहे। इहो बियाह राजबल्लभ प्रसाद सेवक जी मास्टर साहेब के मदद से ठीक भइल। हारल खेदाइल अबकी एक लाख रु नगद आ एगो मोटरसाइकिल सकार लिहलें।
एक दिन फागुन के सगुन सोहरे लागल। हाथी-घोड़ा हेनहेनात आइल। ई तर-उपर धोती पहिरले मन मरले दुआर पूजा खातिर बइठल रहस। चिन्ता चिता मे इनकर चित जरत रहे- 'एके गो माई के कोखी से बेटा बेटी दुनू पैदा होला। बाकिर बेटा भइला पर थरिया बाजेला आ बेटी भइला पर पसंगी के अगियो बुता जाला।' उनका मन मे सवाल उठत रहे- 'एकर विरोध त मेहरारुओ लोग के करे के चाहीं बाकिर अपना भाई के बिआह मे उहो लोग उछाह मे गावेला - "बड़हन अंजुरी पसरिह ए मनोज दुलहा, बड़हन नइया तोहार हे। भा बड़का बड़का बटुला मंगली छोटका काहे ले अइलs हो।" एही समय दुआरपूजा के गीत शुरु हो गइल- 'लिहीं ना अनजानो बाबा धोतिया, हाथे पान के बीड़ा, करीं ना समधिया से मिनती, सिर आजु नवाईं। जवन सिर कहियो ना नवलें तवन सिर बेटी हो रेशमा बेटी कारणे आज नवाईं।' ठाकुर साहेब के अइसन बुझाइल उनकर मुड़ी आज एही बेटी के कारण झुक गइल बा।
दहेज खातिर ढेर थुकम फजिहम के संगे रेशमा विदा हो गइली। बाकिर रेशमा के नसीब मे सुख कहां रहे। रात दिन के खोबसन आ सास-ननद के ठोना- 'लरपुता, मोटरसाइकिल नाहिये देले स। झोटा ध के निकाल ससुरी के।' रोज के ठनहथ हो गइल रहे।
एक दिन रसोई घर से किरासन तेल के सांगे कांच मास के मसाइन गंध सुन के परोसी लोग दउरल। जरत रेशमा के आग बुझावे लागल लोग। देखल लोग कि स्टोव फूट के पसरल तेल अमोध कइले बा।
 रेशमा के छपरा हस्पिटल मे भरती करावल गइल। ऊ जिनगी आउर मउअत से संघर्ष करत रहस। ओही घड़ी एगो डाक्टर इमरजेंसी वार्ड मे आइल। रेशमा पर नजर परते उनकर चेहरा सुख गइल। बेचैनी बढ़ गइल। ऊ खुन चढ़ावे खातिर पुकरलें। बाकिर खुन देवे वाला रहे के? खुन देवे वाला त कफन देवे के प्रतीक्षा मे रहे। डाक्टर के त जइसे ठकुआ मार दिहलस। खुद आपन खुन दिहलें। रेशमा धीरे धीरे आपन आँख खोलली आ नर्स से पुछली- 'हम कइसे बांच गइनी ए बहिन?' लगली पुका फार के रोवे। नर्स चुप करावें लागल। 'देखs हो दे डाक्टर साहेब आवत बानी। उहें के आपन जिनगी दे के तोहरा के बचवले बानी।' रेशमा- 'अभिषेक!' कह के बेहोश हो गइली। दुनू आँखी से लोर गंगा-जमुना बन के उमड़े लागल। अभिषेक अतीत मे लवट के सोचे लगलें- रेशमा के अइसन हालत के दोषी हमही बानी नू।' रेशमा धीरे धीरे आँख खोलली बाकिर उदास चेहरा से जिनगी भागत नजर आवत रहे। अभिषेक हालत के भांप के गम्भीर होत जात रहस तले रेशमा धीरे से लगे बोलवली आ कहे लगली- 'अभिषेक, अगर जिनगी ना ढोवे सकलs त अब लाश ढोवs' इहे कह के उनका गोदी मे मुड़ी रख के हमेशा हमेशा खातिर एह दुनिया से चल गइली। अभिषेक पुका फार के रोवे लगलन। मिलन उनका खातिर नदी के दूगो किनारा हो गइल रहे। अभिषेक के बुझात रहे जइसे उनकर अतीत दुआर पर आ के पिआसे लवट गइल होखे। शायद अभिषेक आ रेशमा के नसीब मे इहे लिखल रहे।
                   
 - अभिषेक भोजपुरिया

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