2. मान्यवर रास बिहारी रवि के कहानी - सुरसतिआ सुतले रह गइल (माईभाखा कहानी लेखन प्रतियोगिता-1)

सुरसतिआ चाची के घर के लगे पुरा गाव बिटोराइल रहो । ई बात होत रहे चार पांच दिन से चाचीआ के केवार बन्द बा । पुरा गाव के कवनो अनहोनी के अनदेशा होत रहुए । तबही खलिफा काका कहले केवारिआ खोल के देखा लोग का भइल बुढिआ के । तब महेश कहले काका केवारी भितर से बनद बा आउर सरल खानी मोहकतो बा । तबले मुखिआ जी आ गइले अब इहे फयसला भइल कि मोहन के फोन कइल जाव आउर केवारी तोराव । मोहन सुरसतिआ चाची के एकलाउता बेटा बारन । चाचा के मरला के बाद उनकरा के पढावे मे सब जमीन बेच के ईनजिनिअर बनावाली अब उ अपना मेहरारु आउर लइकन के सगे कलकता लहेलन । तबे दिनेश आके बोललन चचिआ मर गईल बिआ । तले हम मोहन के फोन लगा देले रहनी फोन मोहने उठवले आउर बोलले चाचा प्रणाम का खबर । हम बतावनी तोहर माई मर गईल बारी । उ रोअते रोअते कहले चाचा हम आजे फलाईट पकर के आवत बानी। 
मोहन माई के मरला के खबर सुन के पागल खानी हो गईले । उ आपन बोस के लगे गईले छुट्टी मिल गइल । तब उ मोबाइले से टिकट बनावले । धरे गईलन तब ले उनकर मेहरारू तइयार रहली । उनके तईयार देख बोललन पाच साल से कहत रहनी बाकिर तु , उ बोलली हम का आजे लेखान पहीलाही टिकट ले आईल रहती । तबे उनकर बेटा बोललस टेक्सी आ गईल ।
साझ ले मोहन पुरा परिवार आ गइलन अपना माई के सुध घिव आउर चनदन के लकडी से जरवले । खुब धुमधाम से कजिआ कईले दानो दछिना बहुत देहले । बरहीआ के दिन खाना पाच गाव के खिआवले । हमहु खाये बईठल रहनी हमरा बगल मे राम जी काका बुदबुदात रहुअन । बुढिआ पईसा ना रहे से भुखे मर गईल आउर आज इ ,,,,,,,,,,, एकरा आगे हम कुछ ना सुन पइनी । एगो कलापनिक कहानी – 

रास बिहारी रवि

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