2. राश बिहारी जी के दूसरी कबिता (5) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
जब प्रसाशन सुतल रहे ।
प्रधान उधल रहे ।
तबो लोग कहे ।
इ बेकार बारन ।
ई कठपुतली सरकार बारन ।
आज सरकार जागल बा ।
प्रसाशन काम मे लागल बा ।
तबो कुछ लोग बोलत बा ।
ई गुनडन के मारत बारन ।
बदलाव(नेता बनाना)ना करत बारन ।
हद हो गईल ।
गरीब किशान मरत बा ।
का ई नया बा ।
अवकात से जयादा काम ।
एकर जिमेदार सरकार बा ।
जे गरीब किशान बा ।
लाभ ओकरा कुछ मिलते नइखे ।
देश त पहीले से ही ।
कमिसन से परेशान बा ।
ईहा सरकार बदनाम बा ।
हद हो गईल ।
सरकार सहयोग देत बा ।
कौलेज मे लइकन के पढे ला ।
देश के दिन रात बढे ला ।
उहा चालीस बरसा बेकार कपुत ।
जमल बा हिन्दुसतान के मिटावे ला ।
जे अपना के बुद्धीजिवी बोलत बा ।
ओकर बुद्धी घास चरे गईल बा ।
हद हो गईल ।
बिस साल पहीले ।
जेकरा लगे ना रहले ।
खाए के खातीर पइसे ।
काम कुछ ना कडोड आइल कइसे ।
उनकर चमचा भुखे मरत बा ।
तबो उनकरा खातीर हल्ला करत बा ।
देश बदलत बा ई बदली कइसे ।
अब त साथ छोड लुटेरन के ।
हद हो गईल ।
राश बिहारी
सराहे जोग रचना.
जवाब देंहटाएं