24. जगदीश खेतान जी के दुगो कबिता (45, 46) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता
1. मंहगाई का ईहे कहाई मंहगाई। तनी बतलईब मंहगू भाई।। दादा जब हमरे पढत रहें खुद अपने मुंह से कहत रहें। खडिया दवात मे घोर घोर पटरी पर अक्षर गढत रहें। अब उनके पोतन के देहीं बा कोट पैंट और नेकटाई।। का ईहे कहाई मंहगाई। तनी बतलईब मंहगू भाई।। जे के न जूरत रहल भगई ऊ खाता रोज पान मगही। जूता बाटा के पहिनत बा जे घूमत रहल बिना पनही।। अईलं जब पूत सऊदीया से का खूब भईल हाई फाई।। का ईहे कहाई मंहगाई । तनी बतलईब मंहगू भाई।। जे सतुआ भूजा के तरसे जे जोतत रहल खेत हर से। कोईलरी गईल रहलं एक बेर सौ रूपया करजा ले हमसे।। ऊ ड्राइवर अब रखले बान ट्रेक्टर से होता जोताई।। का ईहे कहाई मंहगाई। तनी बतलईब मंहगू भाई।। नलका के पानी करछावे अब मिनरल वाटर आवता। मट्ठा महिया अब के पूछे। पेप्सी कोला अब भावता।। एक पसर दूध जे के न जूरे ऊ काटे मक्
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