धरम के कोख से जनमल स्वतंत्रता के पहिलका संग्राम - केशव मोहन (भोजपुरिया बीर-बाकुड़ा नमन पहल-प्रतियोगिता से परे)



धरम के कोख से जनमल स्वतंत्रता के पहिलका संग्राम
आज मन कुछ बेचैन बा, कुछ शांत बा। मन के कवनो कोना में तनीक उथलो-पुथल हो ता, त कवनो कगरी शांतिओ के आसन बा। देश में चारू ओर धरम के राजनीतिकरण पर सभे चर्चा में लागल बा त अपना-अपना चसमा से देख के सभे धरम के व्याख्या करत बा। लोग खातिर धरम कुण्ठा के कुण्ड बनल बा त गतिशीलता के नाम। सामाजिक संर्किणता के साक्षात करावत बा त राजनैतिक परिर्वन के ताकत बा। धरम क्रांति के चिंगारी बा त सत्ता के सुख देबे वाला साधन। धरम टीका-त्रिपुण्ड के चंदन बा त धरम करम-कर्तव्य के पोथी। धरम धीरता के धूरि बा त धृष्ठता के धुँआ। केतना लोग खातिर धरम जिनगी के सगरो सुख के साधन बा त केतना लोग खातिर अवैज्ञानिक आ अप्रमाणिक शोर-शराबा।
    आज हमरो मन एह गहन आ अपरिमित विषय पर बेचैन बा। बेचैन बा कि अगर धरम ना रहीत त आज के समाज, आज के भारत कहाँ रहीत। ना गाँधी के लाठी-लँगोटी के कवनो प्रतीक रहीत ना अंबेडकर के प्रगतिशील चिंतन के प्रमाण। ना लाला लाजपत राय के लाठी मिलल रहीत ना सरदार पटेल के लौह-पुरुष के उपाधि। आजु के भारत पता ना कबले अंग्रेजन के गुलामी में सँसरी चलावत वेंडिलेटर पर सुतल भारत बनल रहीत। हमरा विचार से भारत होखे, चाहें विश्व-समुदाय, धरम सबके बन्हले रहले बा। धरमे के कारण विश्व में बड़का-बड़का क्रांतियन के जनम भइल आ सफलता मिलल। इतिहास गवाह बा कि फ्रांसीसी क्रांति के पहिलका चरण के गतिविधि में सबसे पहिले चर्च पर नियंत्रण कइल रहे। राष्ट्रीय संविधान सभा चर्च पर नियंत्रण क लेहले रहे। एह मामला में चर्च के राज्य के अधीन लेआइल गइल आ रोम के पोप के प्रभाव से छोड़ा के राष्ट्रीय चर्च में बदलल गइल। राज्य खातिर पादरी लोग के वफादारी निश्चित करे ला ‘सिविल कांस्टीच्यूशन आॅफ क्लर्जी’ बनल। ओहके अनुसार पादरी लोग के राज्य खातिर निष्ठा के कसम लेबे के पड़े आ ओह लोग के जनता चुने। पोप आ कुछ पादरी लोग एहके विरोध कइल। एह कानून के कुछ छोटका पादरी लोग विरोध कइल आ कुछ लोग देश छोड़ के यूरोप के क्रांति के विरोध में प्रचार करे लागल, बाकिर एह सगरो धार्मिक बदलाव से फ्रांसीसी क्रांति के बल मिलल।
    संत कबीर जइसन सामाजिक आंदोलनकारी के जवन रूप आज समाज-साहित्य में बा का कवनो तरह से ओहके धरम से अलगा कइल जा सकत ता? धार्मिक आडंबर के तूरे वाला कबीर आजु जवना रूप में भारत के मानस में विद्यमान बाड़ें, का ओहमें मुल्ला लोग के कट्टरता नइखे? का हिंदू आडंबर आ कट्टरता के हाथ नइखे? का ‘गौरवशाली क्रांति’ चाहे ‘रक्तहीन क्रांति’ में धरम के हाथ नइखे? जहवाँ ले हम पढ़ले बानी, गौरवशाली क्रांति के कारन में धार्मिक कारण महत्त्वपूर्ण रहे। जइसे कैथोलिक धरम के प्रसार, टेस्ट अधिनियम के स्थगित कइल, धार्मिक अनुग्रहन के घोषणा, सात पादरी पर अभियोग लगाके बंदी बनावल, नवका कैथोलिक गिरिजाघर आदि ओह क्रांति के कारनन में से रहे।
     बात वाणिज्यिक क्रांति के देखीं। इसाई लोग के पवित्र तीरथ जेरूसलम के तुर्कन से छोड़वावे खातिर सन 1095 ई. से 1291 ई. ले, एगो लमहर धर्म युद्ध चलल, जवना के क्रुसेड कहल जाला। ओह धर्म-युद्ध के एगो महत्त्वपूर्ण प्रभाव ई भइल कि भारत के भोग-विलास के सामानन, मालाबार क्षेत्र के आ पूर्वी द्वीप समूह के मसालन आदि के पता चलल। तेरहवीं सदी में मार्कोपोलो वेनिस से चीन आ जापान के यात्रा कइले। मार्कापोलो के विवरणो से यूरोपवासियन के पूर्वी देशन के सामानन के बारे में जानकारी मिलल। ओह सब घटना के प्रभाव ई भइल कि अब पूर्वी देशन के भोग-विलास के सामानन आ मसाला के माँग यूरोप में होखे लागल। एह तरे से धार्मिक क्रांति के असर से यूरोप में एगो नया वर्ग ‘व्यापारी-वर्ग’ के उदय भइल। 
     इतिहास के कवनो पन्ना के पलटीं, क्रांति के कवनो स्वर के देखीं, हर हाल में, हर काल में साहित्य, समाज आ परिवर्तन, सब धरम से प्रभावित रहल बा। बात कवनो बहाने होखे, धरम आदमी के, समाज के आ इतिहास के हर काल-खण्ड के प्रभावित कइले बा। भारत के त कई देशन में धर्म-भीरु देश कहल जाला। ई वक्तव्य देबे वाला के संकुचित सोच के प्रमाण ह। भारत धरम के डंका बजावे वाला देश ह। धरम पर चले वाला देश ह आ धरम के आधार पर सजत-सँवरत देश ह। भारत के माटी पर अनगिनत अइसन सपूत जनमल बाड़े जे धरम के व्यापक व्याख्या दे के संसार में आपन लोहा मनववले बाड़े। स्वामी राम कृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द जइसन कुछे ना, अनगिनत नाम बा जे विश्व-पटल पर अपना मेधा से सिद्ध कइलस कि भारत में व्याप्त धरम का ह? धरमें के कारण आदमी आदमी बा, ना त पशु के अधिका कुछ ना रहीत -
                                        आहार निद्रा भय मैथुनं च
                                        सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
                                        धर्मो हि तेषामधिको विशेषः
                                        धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।।
    भारत के माटी के मान्यता खाली आदमीए ले ना, ईहाँ त ई मानल जाला कि जब-जब धरम के मान घटी, भगवान तब-तब अपनही अवतार ले के ओकर रक्षा करीहें। तुलसी दास के ई चैपाई के नइखे सुनले -
  जब-जब होई धरम के हानी, बढहिं अधम असुर अमिभानी।   तब-तब प्रभु धर विविध शरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
चाहे महाभारत के अलाप त कान में गइलहीं होई -
              यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! 
            अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !!
    अब केहू का कही? भारत के माटी पर इंसान त इंसान, भगवानो लोग धरम के रक्षा खातिर तत्पर मिल जालें। भारते काहें, चाहे इंगलैड के चुनाव होखे, चाहे अमेरिका के, अगर धरम के ताकत ना रहीत त उम्मीद्वार लोग के गिरिजाघर में जाएके का गरज पड़ीत? गिरिजाघर के संबोधित करे के काहें समय निकाले के पड़ीत?
    जी, बात हम ई कहे के चाहत बानी कि जे कहेला कि हम धार्मिक ना हँईं, ऊ पक्का तौर पर आदमी नइखे हो सकत। आहार, निद्रा, भय आ मैथुनं में लिप्त पशु हो सकत बा। धरम खाली भगवान के सामने, चाहे अल्लाह के सामने माथा टेकले ना ह, धरम त कर्तव्य के पावन रूप ह। धरम त गाँधी जी के सत्य आ अहिंसा ह, धरम त बुद्ध के ऊ प्रेरणा ह, जवना से प्रेरित हो के ऊ आपन बाल-बच्चा छोड़ के समग्र के कल्याण खातिर घर छोड़ देहले। धरम त दधीची के अस्थी-पंजर के दान ह। शिवी के अंग दान से ले के कर्ण के कवच-कुण्डल के दान ह।
    खैर, तर्क चाहें केतनो दिहल जाव, धरम के सगरो रूप आज के आदमी में पइसल बा। जब आज बात पहिलका स्वतंत्रता संग्राम के हो ता त हमके ई पूरा के पूरा धार्मिक पावनता के ऊपज लागेला। बात हम बलिया के नगवा के माटी पर जनमल मंगल पाण्डेय के करत बानी। वीर बाँकुरा मंगल पाण्डेय रोटी आ रोजगार के फेंटा में फेंटा के अंग्रेजन के सगरो शर्त मान के ओकनी के नोकरी करस। अंग्रेजन के एगो ईशारा पा के अपना भारत के सपूतन के मारस। देश के खातिर ना तनिको दया बचल रहे ना भाव। सोंचीं कि कवन ऊ ताकत रहल, जवना कारने एगो साधारण सैनिक भारत के पहिलका स्वतंत्रता संग्राम बिगुल बजा दिहलस? जब हम ई सोंचे लगनी तब धरम के ताकत के अंदाजा लागल। धरमे एक मात्र कारण रहे कि भारत के पहिलका स्वतंत्रता संग्राम के नींव दिआइल। धरम से अलगा कइसे देखीं हम। ऊहे कारन रहे कि सामान्य ब्राह्मण परिवार में जनमला के कारने अपना जवानी में मंगल पाण्डेय के रोजी-रोटी के मजबूरी अंग्रेजी फौज में नोकरी करे के मजबूर क दिहलस। इतिहास में दर्ज बा कि ऊ सन 1849 में 22 साल के उमीर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना में शामिल हो गइले। मंगल पाण्डेय बैरकपुर के सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” के पैदल सेना में एगो साधारण सिपाही के नोकरी करे लगले।
    ईस्ट इंडिया कंपनी के रियासत अउरी राज हड़प आ फेर से ईसाई मिशनरियन के धर्मान्तर आदि के नीति से लोग के मन में अंग्रेजी हुकुमत खातिर पहिलहीं नफरत पैदा क दिहले रहे। अब ओहमें जब कंपनी की सेना खातिर बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी. 53’ राइफल खातिर नया कारतूसन के इस्तेमाल शुरू भइल त मामला अउरी बिगड़ गइल। ओ कारतूसवन के बंदूक में डालने से पहिले मुँह से खोले के पड़े। ओही बीच भारतीय सैनिकन के बीच में ई खबर फइल गइल कि ओह कारतूसवन के बनावे में गाय अउरी सूअर के चर्बी के उपयोग भइल बा। अब का? आस्था में आन्हर मनई तर्क ना जोहेला। मंगल पाण्डेय भले रोटी के मजबूरी में अंग्रेजन के हर हुकूम मानें, बाकिर जब बात धरम भ्रष्ट भइला पर आइल त मन दोसर हो गइल। उनका मन में ई बात घर क गइल कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियन के धरम भ्रष्ट करे पर तूलि गइल बाड़ें। काहें कि गाय अउरी सूअर, दूनो हिन्दू आ मुसलमान दोनों खातिर नापाक ह। बर्जित ह। 
    भारतीय सैनिकन के साथे त पहिलहीं से भेदभाव होखे, अब ई नवका कारतूस वाला अफवाह आग में घीव के काम कइलस। बाति 9 फरवरी 1857 के ह, जब ‘नवका कारतूस’ देशी पैदल सेना के बाँटल गइल तब धरम भ्रष्ट भइला के डर से मंगल पाण्डेय लेबे से इनकार क दिहले। ओकरे कारन मंगल पाण्डेय से हथियार छीन लेबे के आ वर्दी उतार लेबे के हुक्म भइल।  मंगल पाण्डेय ओह आदेश को माने से इनकार क दिहले। 29 मार्च सन् 1857 के दिने जब  उनकर राइफल छीने खातिर अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन आगे बढ़ले त उनका पर आक्रमण क दिहले। एह तरे धरम बचावे के जुगत में मंगल पाण्डेय बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 केे अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह के बिगुल बजा दिहले।  
    मंगल पाण्डेय पूरा प्लानिंग के साथे विद्रोही आक्रमण कइले। आक्रमण करे से पहिले ऊ अपना अउरीओ संघतिया लोग से साथ देबे के आह्वान कइले। बाकिर अंग्रेजन के डरे जब केहू उनुकर साथ ना दिहल तब ऊ अपनहीं कमर कस लिहले। अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन जब उनकर वर्दी उतारे आ रायफल छीने आगे बढ़ल त ऊ अपने रायफल से ओकर काम तमाम क दिहले। एतने ना, विकिपिडिया आ गूगल के स्रोत से कइगो लेखन से पता चलेला कि ओकरा बाद मंगल पाण्डेय एगो अउरी अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब के मरले। धरम के हानि करे वाला अंग्रेजन खातिर उनका आँखि में खून खौल गइल रहे। पता ना, ऊ केतना जने के मुअवते? बाकिर तले बाकी अंग्रेज सिपाही उनका के पकड़ लिहले सों। उनका पर कोर्ट मार्शल से  मुकदमा चलावल गइल आ 6 अप्रैल 1857 के फाँसी की सजा सुनावल गइल। फैसला के मानल जाव त उनका के 18 अप्रैल 1857 के फाँसी दिहल जाइत बाकिर ब्रिटिश सरकार डेरा के दस दिन पहीलहीं, 8 अप्रैल सन् 1857 के फाँसी दे दिहलस। 
   वइसे त भारत के लोगन में अंग्रेजी हुकुमत से तरह-तरह के कारणन से घृणा बढ़त जात रहे, बाकिर गाय आ सूअर के चर्बी के बात धरम पर घात रहल। एह तरे बढ़त घृणा के तेज में मंगल पाण्डेय के विद्रोह एगो चिन्गारी के काम कइलस। ओही चिन्गारी के नतीजा रहे कि 10 मई सन् 1857 के मेरठो के सैनिक छावनी में बगावत हो गइल आ देखते-देखत सगरो उत्तर भारत में धरम के कोख जे जनमल भारतीय स्वतंत्रता के पहिलका संग्राम फइल गइल। एतने ना, 1857 में उनकरे बोअल क्रांति के बीआ 90 साल बाद देश के आजादी के सघन वृक्ष के रूप में तनीए गइल। 
   आजु-काल्ह धरम के नाम पर सगरो करम-कुकरम हो ता। आदमी धरम के लुग्गा में लुकाइल आपन नीमन-बाउर सगरो काम करत बा। ई त सबके सोंझा का कि धार्मिक प्रेरणा से भइल केतना काम सकारात्मक बा आ केतना नकारात्मक। काहें कि बात पहिले नियर नइखे। समय के साथे सोच बदलल बा। बाकिर सोचे के एगो बात जरूर बा कि रउरा जवना धरम खातिर लड़त-मरत बानी, ऊ केतना युग-प्रवर्तक बा? अगर नइखे, त राउर सोच पक्का गलत बा। धरम कबो गलत ना हो सकेला। सोच के ओही सफर में देश के आजाद करावे वाला देवता लोग के प्रति मन बारम्बार नतमस्तक हो ता आ कबीर के दोहा के मनका फेरत बा -
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूँढत बन माहि।
ऐसे घट-घट में राम हैं दुनिया देखत नाहि ।।
                                                      ....................
                                                  केशव मोहन पाण्डेय

जय-जय। नमन।
रउआँ मालूमे बा की भोजपुरिया बीर-बाकुड़ा नमन पहल-प्रतियोगिता के आयोजन कइल गइल बा। ए प्रतियोगिता की लगाइत लेकिन ए से परे रउआँ पढ़नी भाई केशव मोहन पांडेय जी के इ एगो दमदार, ऐतिहासिक, विचारनीय आलेख। इ पहल-प्रतियोगिता से परे ए हू से बा की भाई केशव मोहन जी ए प्रतियोगिता-पहल में एगो निर्नायक की भूमिका में बानीं। जय-जय। रउओं लिख भेजीं। आभार सहित।
-पं. प्रभाकर गोपालपुरिया

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