8. दिलीप पाण्डेय "पैणाली" जी के दुगो कबिता (12,21) - माईभाखा कबितई प्रतियोगिता

कउआ लाला
कुछ दिन से कउआ, हंस के पोल्हावत रहे ,
चलऽ,उडे़ क बाजी लागो,ई समझावत रहे।
कहलस कउआ एक दिन, हंस का लगवा जाई,
के बा  बीर  धरा पर  कहऽ,जे  बाजी  लगाई।
हंसवा धमधुसर बारे,जल्दीए थक जइबे,
हमरा संगे  उड़े  में,कहाँ  ते  पता  पइबे।
सुनत-सुनत हंसवो का एक दिन, क्रोध आइल,
सागर  पार   करेला,     दिन    एगो   रोपाइल ।
दहिने  बांवे   ऊपर  नीचे , काक   खूब  करे,
कोस-भ ,उडला का बाद, लागल पियासे मरे ।
फुदकल छूट गइल,बिश्राम ला खोजे ठेकाना,
उड़ऽ-उड़ऽ  कउआ  लाला, हंस  मारे  ताना ।
देह देहलस जबाब, आ सागर  में  समइलें,
लम्हर बने में कउआ आपन जान गवंइलें।
कहे पैणाली जान-बुझके, मत बनिहऽ घचाक,
देह  देख  कबो  केहू  से, जनी  करिहऽ  मजाक ।



2. खोंट

दर-देयाद से पटरी नइखे,
अंते के लोग खास बा ।
इज्जत तोपे में व्यस्त मालिक, 
घरवइया परत उपास बा ।
उठे से लम्हर बोझा,
कान्हा पर लदाइल बा ।
देखत रहीं खेल तमाशा, 
नाया जबाना आइल बा ।।

एकता के गीत गवाता,
मन में राख के खोंट ।
बड छोट के मोल नइखे ,
बात से दियाता चोट ।
भाई के बढल देख ,
भाई के मुंह झंवाइल बा ।
देखत रहीं खेल तमाशा,
नाया जबाना आइल बा।

फूफा के पूछवइया के बा,
साढ़ू खात मलाईं बारे ।
साली सरहज गद्दी पर सुतस,
मामा बिछावत चटाई बारें ।
सभ जनानी लोगवा,
नइहरे में अझुराइल बा ।
देखत रहीं खेल तमाशा ,
नाया जबाना आइल बा ॥

जब अपने में पटत नइखे,
त् अनका से पटी कइसे ।
स्वारथ के रास जदि छुटी ना,
त् दिल से दिल सटी कइसे ।
धन के बोझा का होई पैणाली ,
काहे लोगवा धधाइल बा ।
देखत रहीं खेल तमाशा, 
नाया जबाना आइल बा ॥

दिलीप पाण्डेय "पैणाली "
सैखोवाघाट 
तिनसुकिया 
असम।
९७०७०९६२३८

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